ख्वाहिशें तो अनंत हैं!

क्यों आज़ लोग खुश और संतुष्ट नहीं?

क्यों लोग स्वयं को नहीं, दूसरों को देख रहें हैं?

आध्यात्मिक-मानसिक प्रगति से दूर,

भाग रहें हैं भौतिक प्रगति की ओर।

पर है स्वयं के गोली-बारी, हिंसा से लहू-लुहान।

गीता ने सदियों पहले बताया,

जो तुम्हारे पास है उसमें संतुष्ट, ख़ुश रहना सीखो,

क्योंकि ख्वाहिशें तो अनंत हैं।

सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।

मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।

अर्थ- संयतात्मा दृढ़निश्चयी योगी सदा सन्तुष्ट है।

जो अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किये हुए है?

वह मुझे प्रिय है। (भगवद् गीता अध्याय 12 श्लोक 14)

Salman Rushdie Stabbed In Neck At New York Event, Taken To Hospital. https://www.ndtv.com/world-news/author-salman-rushdie-attacked-on-stage-at-an-event-in-new-york-news-agency-pti-3249899/amp/1

अधूरी ख्वाहिशें

क्यों कुरेदते हो

पुरानी बातें?

रूह पर उकेरे

यादों और दर्द के,

निशां कभी मिटते हैं क्या ?

खुरच कर हटाने की

कोशिश में कुछ ज़ख़्मों

के निशां रह जातें हैं

नक़्क़ाशियों से।

कई अधूरी ख़्वाहिशें,

गहनों में जड़े नागिनों सी

अपनी याद दिलाती हैं।

जब करो चर्चा,

गुज़रते हैं उसी दौर से।

बेलगाम   ख्वाहिशें-  कविता 

कुछ ख्वाहिशें बेलगाम उडती,

 बिखरती रहती है हवा के झोंकों सी.

 सभी अरमानों को पूरा करना मुशकिल है,

और  बंधनों में बाँधना भी मुश्किल है.

काश -कविता

जिंदगी की ख्वाहिशों में, 

ना जाने कितने काश ,

शामिल हैं।

कुछ पूरे, कुछ अधुरे , कुछ खास …….

रुई से सफेद, बादलों से हलके  काश के फूलों की   तरह।

कुछ हवा के झोंकों में उङ गये।

कुछ आज भी पूरे होने के जिद में,

अटके हैं !!!!

 

 

 

काश / काँस  के फूल      –   मुझे कास के सफेद फूल’ हमेश से नाजुक अौर सुंदर लगते  हैं।  दशहरा  या शारदीय नवरात्र के आसपास ये जंगली फूल ताल, तलैया,  खेतों  के आसपास अौर जहाँ-तहाँ  दिखतें हैं।  काँस को देवी दुर्गा का स्वागत करता हुआ सुमन कहा जाता है । एक बार बङे शौक से इन फूलों को ला कर रखा। लेकिन जल्दी हीं ये हवा के झोंके के साथ पूरे घर में बिखर गये।   (   Saccharum spontaneum / wild sugarcane / Kans grass)

 

kash