किस बात का अभिमान साधो ?

ख़ाक में, राख़ में लिपटे,

शमशानों में भटकते भभूतमय शिव का

संकेत है कि ज़िंदगी यहाँ ख़त्म होती है।

कौन कब जहाँ छोड़ जाए, मालूम नहीं।

ग़ुरूर में डूबे कितने इन राहों से गुज़र गए।

फिर किस बात का अभिमान साधो ?

#TopicYoyrQuote

बाती और चराग

बाती की लौ भभक

कर लहराई।

बेचैन चराग ने पूछा –

क्या फिर हवायें सता रहीं हैं?

लौ बोली जलते चराग से –

हर बार हवाओं

पर ना शक करो।

मैं तप कर रौशनी

बाँटते-बाँटते ख़ाक

हो गईं हूँ।

अब तो सो जाने दे मुझे।

सोना या कुंदन

कुंदन

ज़िंदगी के इम्तहानों में

तप कर सोना बने,

कुंदन हुए या

हुए ख़ाक।

यह तो मालूम नहीं।

पर अब महफ़िलें

उलझतीं नहीं।

बेकार की बातें

रुलातीं नहीं।

ना अपनी ख़ुशियाँ

कहीं और ढूँढते हैं ,

ना देते है किसी

को सफ़ाई ।

हल्की सी

मुस्कान के साथ,

अपनी ख़ुशियों पर

यक़ीं करना सीख रहें हैं।