तहरीर

तहरीर

कभी ज़िंदगी की हर

लहर डराती थीं।

लगता था बहा ले जाएँगी

अपनी रवानी में।

एक दिन दरिया

कानों में फुसफुसाया –

मैं तो दरिया हूँ ।

कभी कभी ज़िंदगी

समुंदर लगेगी।

पर डरो नहीं।

ज़िंदगी की तहरीरों….

लिखावट को पढ़ना सीखो लो।

समय पर, अपने आप पर

भरोसा करना सीख लो।

अपने आप से प्यार

करना सीख लो।

मज़बूत बनाना सीख लो।

हर दरिया समुंदर में गिरता है,

सागर दरिया में नहीं।

दरिया की बातें सुन,

ज़िंदगी की दरिया में

तैरना सीख रहें हैं।

अब गोते लगा कर डूबते

नहीं, उभर जातें हैं ।

अब लोग परेशान है –

यह अक्स किस का है?

क्यों इतनी रौशनी है

पानी में ….

इनकी ज़िंदगानी में।

4 thoughts on “तहरीर

  1. गजब की सुन्दर तहरीर पेश की है आपने रेखाजी !अगर दरिया में गोते लगापर उबरना है तो जिंदगी की लिखावट को सीखना होगा 💖

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