ज़िंदगी के रंग- 219

ज़िंदगी के समंदर में उठते तूफ़ानों के मंजर ने कहा ।

ना भागो, ना डरो हम से।

हम जल्द हीं गुजर जाएग़ें।

साथ लें जाएँगे कई मुखौटे।

तब तुम याद करोगी,

 हमने अपने झोकों से कितने नक़ाब हटाए।

कितने नक़ली अपनों औ असली अपनों से तुम्हें भेंट कराए।

 शांति अच्छी है ज़िंदगी की……

लेकिन वह नहीं दिखती जो

हम कुछ हीं पलों में दिखा अौर सीखा जातें है।

तुम्हें मज़बूत बना जातें हैं।

तुम्हारे जीवन से बहुत कुछ बुहाड़ कर साफ़ कर जातें हैं।

कुछ पलों की हमारी जिंदगानी, जीवन भर का सीख दे जाती हैं।

ना डरों हमसे, ना डरो तूफ़ानों से।

6 thoughts on “ज़िंदगी के रंग- 219

  1. विपत्ति में ही सच्चे साथी नज़र आते हैं | रामचरित मानस की इस चौपाई में भी यही कहा है ! आपने बात और भी आगे बढ़ा दी |  नकली मित्रों  का भी परिचय विपत्ति काल में साफ़ दिख जाता है !
    देत लेत मन संक न धरई । बल अनुमान सदा हित कराई ॥
    विपत्ति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति का संत मित्र गुण एहा ॥

    Liked by 1 person

    1. मानस की सटीक व बिलकुल सही पंक्तियाँ आपने लिख दी हैं। क्या किया जाय? दुनिया ही कुछ ऐसी है।

      Liked by 1 person

  2. behtarin………

    अजनबी नहीं थे उनसे जब वे मिलते थे आदाब से,
    जानते थे उन चेहरे को जिस पर सजे नकाब थे,
    सजते नित्य ख्वाबों का गुलशन कलतक,
    आज वहां बवंडर ही बवंडर,
    लहरें उठती बेहिसाब से,
    मालुम था एकदिन ये पल जरूर आएगा,
    ये जो अदब है कल बदल जाएगा|

    Liked by 2 people

Leave a comment