नासमझी…नादानी क्या बया करे समझदारों की?
जंगल…धरा तो जल हीं रहें हैं.
दुनिया ने तरक़्क़ी इतनी कर ली नदी …पानी पर भी आग लगा दी.
अपने घर में आग लगे, दो पल भी बर्दाश्त नहीं.
बेज़ुबान जलचरों का घर- नदियाँ जलती रहें, चिंता नहीं.
यह समझदारी समझ नहीं आती.

नासमझी…नादानी क्या बया करे समझदारों की?
जंगल…धरा तो जल हीं रहें हैं.
दुनिया ने तरक़्क़ी इतनी कर ली नदी …पानी पर भी आग लगा दी.
अपने घर में आग लगे, दो पल भी बर्दाश्त नहीं.
बेज़ुबान जलचरों का घर- नदियाँ जलती रहें, चिंता नहीं.
यह समझदारी समझ नहीं आती.

You must be logged in to post a comment.