अतीत बनते हमने देखा है…

वक़्त गुजराता है बे आवाज़

लाख रोक लो घड़ी के काँटे

अंगुलियों से अपने …..

वक़्त की मौज़ों का फिसलना

रवायत है क़ुदरत की .

ज़िंदगी जी लो इस घड़ी में वरना ये पल

हाथ से फिसल कर अतीत बनते हमने देखा है.

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