ख़ुद को ख़ुद से

कुछ उलझा उलझा ,

कुछ रूठा रूठा सा है वजूद अपना

ख़ुद को ख़ुद से याद करूँ कैसे ?

करना है ख़ुद को ख़ुद से आज़ाद .

करुँ कैसे ?

बड़ा उलझा प्रश्न है.

कभी कभी उठने वाली कसक,

मन की दर्द , पीड़ा , विरह

किसी को समझाऊँ कैसे ?

अपने से, अपने रूह से बात करूँ कैसे ?

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