तुम हो कहीं !!

श्रद्धांजलि Tribute to my husband.
We donated his eyes. I know He is still somewhere, watching this beautiful world.

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जब देखा तुम्हें

शांत, नींद में डूबी आँखें

शीतल चेहरा …..

चले गए ऐसा तो लगा नहीं.

वह पल, वह सम, वह दिन ….

ज़िंदगी के कैलेंडर का असहनीय दि बन गया .

उस दिन लगा

ऐसा क्या करूँ कि तुम ना जाओ?

कुछ तो उपाय होगा रोकने का.

रोके रखने का, लौटाने का ……

कुछ समझ नहीं रहा था.

कुछ भी नहीं ….

पर इतना पता था

रोकना है, बस रोकना है .

तुम्हें जाने से रोकना है .

और रोक भी लिया ………

अब किसी भी अजनबी से मिलती हूँ

तब उसकी आँखों में देखतीं हूँ ….

कुछ जाना पहचाना खोजने की कोशिश में .

कहीं तुम तो नहीं …….

शायद किसी दिन कहीं तुम्हें देख लूँ.

किसी की आँखों में जीता जागता .

बस दिल को यही तस्सली है ,

तुम हो, कहीं तो हो, मालूम नहीं कहाँ ?

पर कहीं, किसी की आँखों में.

हमारी इसी दुनिया में.

 या क्षितिज के उस पार ………?

श्रद्धा सुमन हैं ये अश्रु बिंदु

जो लिखते वक़्त आँखों से टपक

इन पंक्तियों को गीला कर गए .

 

Friendship

If you are

looking for a

friend who is

faultless,

you will be

friendless.

Rumi ❤️

ज़िंदगी के रंग -164

शाम हो चली थी

हवा थी कुछ नशीली सी .

तभी ……

पत्तों के झुरमुट के बीच से झाँका

धुआँ धुआँ सा, आँखों में नमी लिए शाम का सूरज

गुलाबी लाल किरणों के उजाले के साथ.

पूछा हमने – किसे खोज रहे हो ?

कुछ कहना है क्या ?

कहा उसने –

आज की शाम तो पूरे चाँद के नाम है .

उसी पूर्णिमा की चंद्रिका के इंतज़ार में हूँ .

जाते जाते एक झलक दिख जाए.

सदियों से यह क्रम चल रहा है.

एक दूसरे के आने के

इंतज़ार में जीना और फिर ढल जाना…….

ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा, 17 जून .