संवेग या इमोशन हम सभी में एक जैसे होतें है – लड़के हो या लड़कियाँ . ये एमोशन कभी हम सभी को कमज़ोर बनाते है और कभी कठिनाइयों का सामना करने की हिम्मत देते हैं. ये जीवन के महत्वपूर्ण व्यवहार हैं.
तब क्यों लड़को को अपना डर , आँसू , कमज़ोरी दिखाने से रोका जाता है ? क्यों वे अपनी स्वभाविक भावना छुपाते है और अगर नहीं छुपाते तब क्यों कहा जाता है – लड़की हो क्या?

शायद इस लिये कि यह समाज पुरुष प्रधान है
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वही तो मैं जानना चाह रहीं हूँ कि क्या यह सही है ?
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जी नहीं
यह ग़लत है और इसकी मैं निंदा करता हूँ । और बग़ैर आप नारियों के सहयोग से ये ख़त्म होने वाली भी नहीं । क्योंकि एक बचपन से इस सोच को बताने वाली अक्सर माँ ही होती है । और वह माँ भी पुरुष प्रधान समाज से प्रभावित होती है ।ग्रामीण क्षेत्र में तो ऐसा ही होता है ।
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बिलकुल .
पर अगर इसे बड़े बुज़ुर्ग या माँ किसी कारण नहीं समझाती है . फिर भी लोगों को समझना होगा – एक अच्छे और स्वस्थ भविष्य के लिए .
अपने विचार शेयर करने के लिए बहुत धन्यवाद अफ़ज़ल .
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जी हाँ मैम
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Bilkul shi kha mam
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Shukriya.
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