समय का गुल्लक

बरसों से बचा बचाकर समय   के पल इकट्ठे किए थे।

उन्हे मन में जोड़कर कई दिन भी बना लिए

और सोचा था जब समय आएगा ……

तब दिल खोलकर इन पलों को खर्च करूँगी,

घूमूंगी, जियूँगी , जो जी चाहेगा वही करूँगी…

आज मन पक्का करके तोड़ा उन

पलों के गुल्लक,  तब पता चला ..

जो बीत गया वह बीत गया .

बीता “समय” वर्तमान में नहीं चलता…

 

 

 

Unknown

28 thoughts on “समय का गुल्लक

    1. धन्यवाद शिखा . मैंने अपनी सारी ज़िंदगी यह ग़लती की है . भूल गई थी कि बीत समय कभी वापस नहीं लौटता है .

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      1. हाँ, विचार तो नेक है शिखा जी । पर इस भूत-भविष्य के माया की रचना भी तो कर दी है विधाता ने।

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  1. ये तो आपने 1000₹ के जमा किये नोट 2017 मे खर्च करने के लिये निकाले 😋
    मत कर देर इतनी जवानी निकल जाएगी,
    बुढ़ापे मे क्या खाक जिन्दगी जीई जायेंगी! 😃

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    1. हाँ स्वप्निल . काफ़ी ‘समय’
      जमा किया था नासमझी में. 😊
      सारा demonetisations में डूब गया.
      बिलकुल सही पंक्तियाँ लिखी है तुमने . आभार !!!!

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  2. 🙏😃 आज से कोई यादे, ख्वाहिशें दिल की बैंक मे जमा न करते हुये, आते ही उन्हें खर्च कर देंगे..

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