ईश्वर-नियन्ता पत्थरों की मुर्तियोँ में नहीं बसते।
हमारे विचारों मे बसते हैं।
अौर मन-आत्मा-दिल
वह मंदिर- मस्जिद -चर्च
वह पूजा स्थल हैं….
जहाँ ये विचार उपजते हैं।
ईश्वर-नियन्ता पत्थरों की मुर्तियोँ में नहीं बसते।
हमारे विचारों मे बसते हैं।
अौर मन-आत्मा-दिल
वह मंदिर- मस्जिद -चर्च
वह पूजा स्थल हैं….
जहाँ ये विचार उपजते हैं।
Very true !!
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thank you.
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मेरे ख्याल से आराधना के स्थलों पर व्यक्ति सर्मपण के भाव से और सकारात्मक विचारों के साथ जाता है ।बड़े से बड़े धनी और अभिमानी व्यक्ति का सिर अपने आप इनके दरबार मे झुक जाता है ,और कुछ पल के लिये ही सही व्यक्ति अभिमान से परे हो जाता है,तब सकारात्मक तरंगे पैदा होती हैं और इन आराधना के स्थानों पर सकारात्मक तरंगों का घेरा सा बना होता है,जहाँ मन को शांति मिलती है ,और सुविचार उपजते हैंl
ये मेरे खुद के विचार है ,शायद और लोगों के विचार इससे अलग हो😊
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आपके विचार बड़े खूबसूरत और सही हैँ . अराधना स्थलों पर उत्पन्न होने वाले विचार दरअसल हमारे दिलो दिमाग से ही पैदा होते हैँ , हाँ जगह का प्रभाव इन्हे प्रभावित करता हैँ . पर ज्ञानी संत कही भी बैठ कर अराधना और ज्ञान प्राप्त कर लेते हैँ . इसलिये आत्मा और मन का शुद्ध होना जरूरी हैँ .😊😊😊
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बहुत सारे लोगों के मन से निकले शुद्ध विचार ही इन आराधना स्थलों की शक्ति को बढ़ाते हैं शायद इसीलिए कई आराधना के स्थल सिद्ध हो जाते हैं 😊
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बिलकुल, मैं भी आराधना स्थल व सिद्ध स्थानों के महत्व को मानती हूँ।
पर यह तो तय है कि हमारे विचारों की वजह से साधना स्थलों का निर्माण हुआ। जहाँ बुद्ध को बोधित्व मिला वह पूजा स्थल बन गया।
आराधना स्थलों से सिद्ध विचार उत्पन्न हो यह सभी के लिये जरुरी नहीं है।
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👏👍
http://ninja150ss.com
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thank you. 🙂
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बहुत खूब लिखा ……..
मेरे मन में रब बसते हैं,
मन से विचार जन्म लेता है,
विचार शब्द और शब्द ही
ग्रन्थ का निर्माण करती है,
वैसे ही मन में रब की मूरत दिखती है,
जिसकी हम मंदिर बनाते हैं,
फिर वहां जाकर उनकी पूजा कर
खुद को उनके समीप पाते हैं,
हमारी श्रद्धा ही उस स्थल को
देवस्थल बनाती है,
और फिर हमें खुश करने को
भगवन वहाँ विराजमान हो जाते हैं
बहुत बढ़िया लिखा आपने…..
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कितनी अच्छी बात आपने काव्य के रुप में लिखी है। दिल खुश कर दिया आपने अौर मुझे लाजवाब कर दिया अपनी इतनी सुंदर अभिव्यक्ति से। हार्दिक आभार।
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Sukriya Rekha ji………apne likha hi etna sundar hai ki use vistaa jitna bhi diya jaaye kam hoga….
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aabhar Madhusudan!! yah to apne apne mann kI sraddhaa hai jo aapke itne sundar vicar hai varna is kavita ko to bahut ne padhaa aur saraahaa.
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बहुत सही है!
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धन्यवाद सविता 🙂
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