पापा की गर्ल फ्रेंड (कहानी ) 

 

                     वीणा  अपनी बीमार सहेली से मिल कर वापस लौट रही थी. वह अस्पताल के कारीडोर से गुजर रही थी. तभी उसकी नज़र सामने  के अधखुले द्वार से, कमरे के अंदर चली  गई.  नर्स  द्वार खोल कर बाहर निकल रही थी. बिस्तर पर लेटे बीमार का चेहरा  परिचित लगा. वह आगे बढ़ गई. फ़िर अचानक ठिठक कर रुक गई. दो पल कुछ सोचती रही. फ़िर पीछे मुड़ कर नर्स को धीमी आवाज़ में पुकारा.

                     नर्स ने  जब पेशेंट का नाम बताया.  तब उसका रहा सहा शक भी दूर हो गया. विनय चाचा उस के  पापा के करीबी दोस्त थे. थोड़ी उधेड़बुन के बाद वह धीरे से द्वार खोल कर कमरे में चली गई. चाचा ने आहट  सुन  आँखे खोली. आश्चर्य से उसे देख कर पूछ बैठे -“बीनू , तुम….? यहाँ कैसे ?  कितने सालों बाद तुम्हें देख रहा हूँ. कैसी हो बिटिया ? अभी भी मुझ से नाराज़ हो क्या ?  चाचा और उनका बेटा राजीव उसे हमेशा इसी नाम से बुलाते थे. कभी पापा के बाद विनय चाचा ही उसके आदर्श थे. आज़ उन्हे ऐसे कमजोर, अस्पताल के बिस्तर पर देख वीणा की आँखें भर आईं.

                              ढेरो पुरानी यादें अलग-अलग झरोखों से झाँकने लगीं. पुराने दिन आँखों के सामने सजीव हो उठे. पापा और चाचा के  सुबह की सैर,  फिर उनकी चाय की चुस्कियाँ, रात में दोनों का क्लब में ताश खेलना और  गपशप,  दोनों परिवार का एक साथ पिकनिक और सिनेमा जाना. इन सब के साथ एक और सलोना चेहरा उस की यादोँ की खिड्कियाँ  खट्खटाने लगा.

                 नन्हे  राजीव और वीणा की पढाई एक ही स्कूल से शुरू हुई थी. पहले हीं दिन वीणा स्कूल की सिढियोँ पर गिर गई थी. उस दिन से राजीव रोज़ उसकी ऊँगली थाम कर स्कूल ले जाता. दोनों  के ममी-पापा नन्हें राजीव और नन्ही वीणा को एक दूसरे का  हाथ थामे देख हँस पड़ते. चाकलेट के लिये हुए  झगड़े में अक्सर वीणा, राजीव की कलाई में दाँत काट लेती.

                         उस दिन वीणा अपना दूध का दाँत मिट्टी में दबाने हीं वाली थी, तभी राजीव उसके हाँथों से दाँत छिनने लगा.  सभी हैरान थे. पूछ्ने  पर, वह ऐसा क्यों कर रहा है? राजीव ने कहा – “ मैं  इस दांत को कौवे को दिखा दुँगा. तब वीणा का  नया  दाँत नहीं  निकलेगा. ममी ने कहा है,  दूब  के नीचे दाँत मिट्टी में दबाने से जैसे-जैसे दूब बढेगा वैसे हीं नया  दाँत जल्दी से निकल आयेगा. अगर कौवे ने  दाँत को देख लिया तब वह  दाँत कभी नहीं निकलेगा. वीनू  मुझे बहुत  दाँत काटती है, इसलिये …….. ”  सभी का हँसते-हँसते बुरा हाल था. ऐसे हीं बचपन से बड़े होने तक दोनों का लड़ना झगड़ना , खेल कूद सभी साथ होता रहा. पता ही नहीँ चला समय कब फिसलता हुआ निकल गया.

                   दोनों बच्चे बड़े हो गये. दोनों बच्चे  कब एक दूसरे को नई नज़रों से देखने लगे.  उन्हें भी समझ नहीँ आया. बचपन से दोनों घर-घर खेलते बारहवीं में पहुँच कर सचमुच घर बसाने का सपना देखने  लगे. बारहवीं  में दोनों अच्छे अंको से पास कर अपने सपने सजाने लगे थे. उस दिन बिनू कालेज से दो एडमिशन फार्म ले कर उछ्लती-कुदती राजीव का फार्म देने उसके घर पहुची. बाहर हीं विनय चाचा खडे थे. उन्हों ने थोडी रुखी  आवाज़ में उसके  आने का कारण पूछा. फिर गुस्से से बोल पडे – “ राजीव घर में नहीं है. दिल्ली गया हुआ है. वह  अब यहाँ नहीं  पढेगा.  विदेश जा रहा है अपनी मौसी के पास. आगे की पढाई वहीं करेगा. तुम अब यहाँ मत आया करो.”  

                    विनय चाचा का वह रुखा व्यवहार उसके दिल में चुभ गया. पर उससे ज्यादा चुभन हुई थी. राजीव का  उसे  बिना बताये, बिना मिले चले  जाने से. वह टूटे दिल और  आँसू भरी आँखों  के साथ वापस लौट आई. कुछ हीं महीनों में एक अच्छा रिश्ता आया और उसकी शादी हो गई. ना जाने क्यों शादी में भी विनय चाचा- चाची नहीं आये.

                          शादी के बाद वीणा अपनी जिंदगी में खुश थी. बच्चे और पति के साथ जिंदगी बहुत खुशगवार थी. पर कभी-कभी पुरानी यादें उसके दिल में कसक पैदा करती. विनय चाचा को वह कभी माफ नहीं कर पाई. राजीव के व्यवहार से भी आहत थी. अक्सर सोंचती, उसने ऐसा क्यों किया? कभी खत भी  तो लिख सकता था. अपनी  मज़बूरी  बता सकता था. इस बात के रहस्य को वह सुलझा नहीं पाती.    

                 आज़ अचानक विनय चाचा को देख उसकी दिल कर रहा था,  उन्हें अपने गिले-शिकवे और उलाहना सुनाने का. तभी दरवाज़े पर हुई आहट से उसने नज़रें उठाईं. सामने  दो प्यारी-प्यारी किशोरियों के साथ एक सुंदर महिला खडी थी.  जब विनय चाचा ने उनका  परिचय राजीव की पत्नी और बेटियों के रुप में कराया. तब वह थोडा असहज हो गई और झट  जाने के लिये खडी हो गई.

          राजीव की पत्नी ने  उसे गौर से देखा और बडे प्यार से  उसकी कलाईयाँ पकड कर बैठा दिया. वह हँस कर कहने लगी आपके बारे मेँ राजीव और सबों से बहुत कुछ सुना है. अगर आपके पापा ने अंतर जातिय  विवाह को स्विकार कर लिया होता. तब आज़ मेरी जगह आप होतीं.

 

                  सुना है, राजीव और  पापा ने अपनी ओर से बहुत प्रयास किया था.  आपके पापा की नाराज़गी के आगे किसी की ना चली. वीणा ने हैरानी से विनय चाचा को देखा. उन्हों ने सह्मति में सिर हिलाया. वीणा  बोल  पडी – “ मुझे तो किसी ने कुछ नहीं  बताया था. आपने और राजीव ने भी कभी कुछ नहीं कहा.  आज़ तक मैं आपको इन सब का जिम्मेदार मानती रही.”

 

              राजीव की पत्नी बडे ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी. वह बोल पडी – “शायद इसे हीं नियति कहते हैं. पापा, आपके पिता की बातों का सम्मान करते हुए अपनी मित्रता निभा रहे थे. पुरानी बातों को भूल, आपको और राजीव को भी  मित्रता निभानी  चाहिये.” उसकी सुलझी बातें सुन वीणा के मन का आक्रोश तिरोहित हो गया. तभी विनय चाचा बोल पडे –“ बेटी, तुम अपनी घर-गृहस्थी में खुश हो. यह मुझे मालूम है. मैं तुम्हारे पापा से मालूम करता रहता था. तुम मेरी  बेटी हो ना ?”

    

                              दोनों किशोरियाँ कुछ समझ नहीं पा रहीं थीं. छोटी बेटी ने धीरे से अपनी माँ के कान में पूछा  – ये कौन हैं मम्मी ?  राजीव की पत्नी के चेहरे पर मुस्कान फैल गई. उसने हँसते हुए कहा – तुम्हारे पापा की फ्रेंड … ….गर्लफ्रेंड है. वीणा के चेहरे पर भी तनाव रहित  मुस्कान नाच उठी.   


Hi , Thanks for visiting. Pl do comment , if you liked the story.

16 thoughts on “पापा की गर्ल फ्रेंड (कहानी ) 

  1. Thoroughly enjoyed reading it till the end, I always like the twist in your stories like O Henry. Bahut hi accha aur satik likhti hai app. Do keep posting more stories. Never thought the title would end up like this, very nice title for the story. Best part is excellent short stories 🙂

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    1. अगर आप चाहें , मेरी पुरानी कहानियाँ भी पढ़ सकते हैं. इस ब्लॉग में मिल जायेंगी. मनोयोग से पढ़ने और पसंद करने के लिये धन्यवाद.

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