
एक थी खूबसूरत सी लड़की,
सब से नाराज़, बेजार ,
उखड़ी -उखड़ी , थोड़ी कटी-कटी.
पूछा , तब उसने बताया –
तलाकशुदा हैं ,
इसलिये कुछ उसे उपलब्ध मानते हैं.
कुछ चुभने वाली बातें करते हैं.
किसी ने कहा – इन बातों से भागो मत.
जवाब दो , सामना करो.
अगली बार छेड़े जाने पर उसने ,
पलट कर कहा – हाँ, अकेली हूँ.
पर क्या तुम पत्थर हो ? पाषाण हो
क्या तुम्हारे घर की लड़कियों के साथ ,
ऐसा नहीँ हो सकता ?
मदद नही कर सकते हो , ना करो.
पर अपमानित तो मत करो.
images from internet.
Hume sab ko man-samman dena chahiye.. Sahi seekh de rhi aap.
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धन्यवाद सनी , अभी भी हम सबों को बहुत कुछ सीखना होगा. दूसरों के दर्द को महसूस करने की समझ कम लोगों में होती हैं.
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Sahmat hu aapse aur prarthna karunga ishwar se ki wo nek logon ko himmat de aur wo auron ko prerit kar sake aisi taqat de.
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हाँ , यह सब मैंने भी जब सुना और जाना , तब बड़ी तकलीफ हुई थी. हमारे समाज में बदलाव की ज़रूरत हैं.
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बहुत अच्छी कविता है…
अच्छा लिखा है…👌
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धन्यवाद अमित.
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great….
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Thanks.
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Thanks Adi.
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