जिंदगी के रंग ( कहानी )

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                            पालतू कुत्तों को शाम में अक्सर लोग पार्क में घुमाने और खेलने के लिए लाते है। शाम में मार्केट कॉम्प्लेक्स से लौटते समय, मैं पार्क के पास से गुजर रही थी। तभी मैंने एक अजीब दृश्य देखा। एक बड़ी सी चमकती काले रंग की कार कुछ दूर चौराहे पर रुकी। एक व्यक्ति रुई जैसे सफ़ेद, काली आँखों वाले कुते को ले कर उतरा। उसने लाल रंग के एक बौल को हवा में बहुत दूर उछाला। कुत्ता बौल की तरफ लपका। उत्साह के साथ मुँह में बौल ले कर वापस अपने मालिक की ओर दौड़ा। पर हैरानी की बात थी, कि वह व्यक्ति इस बीच तेजी से कार ले कर जा चुका था। कुत्ता बौखलाया हुआ इधर-उधर दौड़ रहा था।  

      

                अब अक्सर वह कुत्ता मार्केट के खाने-पीने की दुकानों के पास मुझे दिख जाता था। पर एक अद्भुत बात  थी। रोज़ शाम के समय ठीक उसी चौराहे पर बैठा दिखता। शायद उसे अपने मालिक का इंतज़ार था। मेरी नज़रें रोज़ आते –जाते उस स्वामिभक्त स्वान पर चली जाती। मैं श्वान प्रेमी नहीं हूँ। पर उसे देख मेरा दिल कचोट उठता  था। कुछ समय बाद परिस्थितिवश मुझे दूसरे शहर जाना पड़ा।  

                 वर्षों बाद मैं अपने घर वापस  आई। बाजार जाते समय अपने आप नज़रें चौराहे की ओर चली गई। कुत्ते का कहीं पता नहीं था। वहाँ पर एक वृद्ध, बीमार सा दिखने वाले  भिखारी ने डेरा जमा लिया था। मेरे मन में ख़्याल आया – वह खूबसूरत प्यारा सा  कुत्ता मर-खप गया होगा। कुत्तों की आयु 12-15 वर्ष होती है। मैं तो बीसियों वर्ष बाद लौटीं हूँ।

                     उस दिन मौसम बड़ा सुहाना था। गुलाबी ठंड में पार्क फूलों से भरा था। बच्चे शोर मचाते खेल रहे थे। मैं उसी चौराहे के बेंच पर बैठी मौसम का मज़ा ले रही थी। तभी वह भिखारी आया और नियत स्थान पर टाट बिछा कर बैठ गया। कुछ देर बाद शुद्ध और सभ्य भाषा में मेरा अभिवादन करते हुए कहा – “ नमस्कार, मैं बड़ा भूखा हूँ। कुछ पैसे मिल जाते तो … ।”

         

         मैंने आश्चर्य से उसे देखा। उसने शायद मेरे अनकहे प्रश्न को पढ़ लिया और कहा – “ मैं भिक्षुक नहीं हूँ। मेरा बेटा मुझे यहाँ बैठा कर थोड़ी देर में लौट की बात कह गया है। पर आया नहीं। एक वर्ष से रोज़ उसका हीं इंतज़ार करता हूँ।“ फिर वह विक्षिप्तों की तरह स्वगत बड़बड़ाने लगा – “शायद वह मेरी बीमारी से तंग आ गया था। मेरे ऊपर खर्च भी तो बहुत होता था।” उसने नज़रे उठा कर  ऊपर आकाश की ओर देखा और दोनों हाथों को प्रणाम मुद्रा में जोड़ कर कहा –“ मैंने भी तो अपने पालतु बीमार कुत्ते को ऐसे, यहीं तो छोड़ा था।” 

(यह कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है। अक्सर लोग अपने पालतू जानवरों को लावारिस छोड़ देते हैं। हम मनुष्य इतने निष्ठुर क्यों हैं ?) 

 

 

छाया चित्र इंटरनेट के सौजन्य से।

 

मैं एक लड़की ( कविता 1 )

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इस दुनिया मॆं मैने
         आँखें खोली.
               यह दुनिया तो
                     बड़ी हसीन
                           और रंगीन है.

मेरे लबों पर
       मुस्कान छा गई.
             तभी मेरी माँ ने मुझे
                      पहली बार देखा.
                              वितृष्णा से मुँह मोड़ लिया

और बोली -लड़की ?
           तभी एक और आवाज़ आई
                       लड़की ? वो भी सांवली ?

 

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कन्या पूजन ( कविता )

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नवरात्रि की अष्टमी तिथि ,
प्रौढ़ होते, धनवान दम्पति ,
अपनी दरिद्र काम वालियों
की पुत्रियों के चरण
अपने कर कमलों से
प्यार से प्रक्षालन कर  रहे थे.

अचरज से कोई पूछ बैठा ,
यह क्या कर रहें हैं आप दोनों  ?

अश्रुपूर्ण नत नयनों से कहा –
“काश, हमारी भी प्यारी संतान होती.”
सब कुछ है हमारे पास ,
बस एक यही कमी है ,

एक ठंडी आह के साथ कहा –
प्रायश्चित कर रहें है ,
आती हुई लक्ष्मी को
गर्भ से ही वापस लौटाने का.

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बेटियाँ ( कविता )

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नन्ही सी बेटी ने कहा ,
माँ , चाची कहती  हैं ,
तुम बेटी -बेटी मॆं भेद भाव करती हो.
तुम्हें लड़के प्यारे हैं.
माँ ने कहा –  मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ ?
मेरी तो तुम दो  ही प्यारी बेटियाँ हो.
बेटा को मैंने जन्म ही नहीँ दिया.
तब भेद और तुलना करूँगी किस से ?

चाची की तरह  कन्या भ्रूण हत्या कर
बेटा पा सकती थी.
पर नहीँ किया ऐसा ,
क्योंकि मुझे तुम
दो ,बेटियाँ ही प्यारी हो.

 

 

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प्रवस पीड़ा (कविता )

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अभी प्रवस पीड़ा से
ऊबरी भी नहीँ थी.
एक ओर कमर पर हाथ धरे
जेठानी खड़ी थी.
दूसरी ओर लाल नेत्रों से
ताक रहे थे पति.
दोनो बोल पड़े – फिर बेटी ?
तुम में कोई सुधार नहीँ है.

 

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मैं एक लड़की ( कविता 2)

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मैंने आँखें खोली ,
देखा  मेरी  माँ की
आँखों मे खुशी के आँसू है.
मेरे पिता बोल रहे हैं –

इतना पूजा जतन किया
टोना -टोटका किया.
फिर दूसरी बार भी लड़की ?
बड़ी बेकार औरत हो तुम.

 

 

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मैं एक लड़की ( कविता 1 )

इस दुनिया  मॆं मैने
        आँखें खोली.
              यह दुनिया तो
                       बड़ी हसीन
                             और रंगीन है.

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मेरे लबों पर
        मुस्कान छा गई.
                 तभी मेरी माँ ने मुझे
                        पहली बार देखा.
                                वितृष्णा से मुँह मोड़ लिया

और बोली -लड़की ?
             तभी एक और आवाज़ आई
                          लड़की ? वो भी सांवली ?

 

 

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A new born girl ( poem )

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I opend my dark eyes
saw the big beautiful
world around me ,
for the first  time.
There was smile on ,
My pink cupid lips.
Suddenly  heard my mothers’
voice., which I was
Listening for last ,
Nine months in her womb.
She whispered – A GIRL ?
And she turned her face away.

 

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