Month: March 2015
#Digitallndia आओ हम डिजिटल बन जाएँ ( blog related topic )
क्या है डिजिटल भारत परियोजना?
यह परियोजना वर्तमान सरकार की शीर्ष प्राथमिक परियोजनाओं में से एक है।
यह भारत के विकास के लिए बनाई गई एक परियोजना है। इसकी कार्य अवधि 26 नवंबर 2014 से 2019 के बीच है। डिजिटल भारत देश को सशक्त और ज्ञानपूर्ण अर्थव्यवस्था देने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है । यह कार्यक्रम इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा परिकल्पित किया गया है। जिस से भारत तेज़ी से प्रगती पथ पर अग्रसित हो सके ।
डिजिटल भारत विकास के नौ क्षेत्रों पर बल डालेगा। जो निम्नलिखित हैं-
1. ब्रॉडबैंड राजमार्ग
2. मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए सार्वभौमिक पहुँच
3. पब्लिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम
4. ई-शासन – प्रौद्योगिकी के माध्यम से सरकार में सुधार
5. ई-क्रांति – सेवा की इलेक्ट्रॉनिक डिलिवरी,
6. सूचना,
7. इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण,
8. नियुक्ती के लिए
9. अर्ली हार्वेस्ट कार्यक्रम
क्या किया जा रहा है?
इसमें उच्च गति के इंटरनेट नेटवर्क के साथ ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने की योजना शामिल है। डिजिटल भारत के तीन मुख्य घटक हैं-
1 डिजिटल बुनियादी ढांचे का निर्माण
2 डिजिटल सेवाओं का समुचित वितरण
3 डिजिटल साक्षरता हैं।
इस योजना में सरकारी सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप दिया जाना है। जिससे कागजी कार्रवाई को कम किया जा सके। इसमें सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं दोनों के फायदे के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराया जाएगा।
योजना का संचालन-
यह योजना संचार मंत्रालय और आईटी की अध्यक्षता में क्रियान्वित हो रहा है। इसे डिजिटल भारत सलाहकार के समूह द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। यह भारत के सभी मंत्रालयों और विभागों को डिजिटल बनाएगा। यह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत किया जाएगा। इसके अलावा, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र का पुनर्गठन करने की योजना भी हैं।
डिजिटल भारत के सामने चुनौतियां
भारत इस क्षेत्र में अभी अपेक्षित ऊचाँइयों तक नहीं पहुच पाया है। इसलिए सबसे पहले आवश्यक है कि भारत में साइबर सुरक्षा नीति को मजबूत बनाया जाय। राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 साइबर कानून को सही प्रकार से लागू करने किया जाये। जिससे साइबरस्पेस के जोखिम को कम किया जा सके। इस परियोजना में ई-कचरा प्रबंधन पर उचित ध्यान देने की जरूरत होगी। साथ-साथ ई-निगरानी, नागरिक अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था, कानूनी ढांचे में ई- सुरक्षा संबंधी नियम बनाने और लागू करने जैसी चुनौतियाँ है। साथ हीं डेटा संरक्षण कानून, गोपनियता, जैसे विषयों का प्रबंधन भी एक चुनौती होगी।
डिजिटल भारत की वर्तमान स्थिति
शीर्ष समिति बहुत जल्द ही इसकी प्रगति का विश्लेषण करने जा रहा है। मीडिया रिपोर्टों ने भी डिजिटल भारत के लिए नीतियों के विकास की ओर संकेत किया है। टेलीकॉम मंत्री श्री रवि शंकर ने बताया है कि इस परियोजना से रोजगार की संभावना भी काफी बढेंगी। कई कंपनियों ने इस परियोजना में अपनी रुचि दिखाई है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में श्री नरेन्द्र मोदी ने डिजिटल भारत के लिए अपनी मंजूरी दे दी है।
विश्व के विकास पटल पर भारत
हर साल विश्व आर्थिक मंच इनसीड के साथ सहयोग में वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी रिपोर्ट प्रकाशित करता है। यह विभिन्न देशों में अनुसंधान, नेटवर्क तत्परता, अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ जैसे विषयों का व्यापक आकलन करता है।
इस रिपोर्ट में भारत 83 वें स्थान पर है। इंडोनेशिया, थाईलैंड , ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका श्रीलंका, और फिलीपींस जैसे देशों से भारत पीछे है।
भारत ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं रिपोर्ट में भी भारत का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है। । रिपोर्ट के अनुसार भारत में बुनियादी डिजिटल सुविधाओं की कमी, नेटवर्क तत्परता में कमी, राजनीतिक, विनियामक और कारोबारी माहौल की गुणवत्ता में कमी है। जो विकास में बाधक बनी हुई है।
भारत आज विश्व का सबसे युवा देश है। अर्थात हमारे यहाँ हमारी बहुत बड़ी जनसंख्या युवा वर्ग की है। अतः हमारे देश में विकास की अपार संभावनाएं है। यह नई खोजों और आधुनिकीकरण की ओर हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा । ऐसे में यह परियोजना बहुत मददगार सिद्ध होगी। इसके लिए हमारे देश में डिजिटल कौशल और बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट का स्वागत योग्य फैसला- धारा 66 ए ( समाचार )
सुप्रीम कोर्ट ने एक सराहनीय फैसला लिया है। धारा 66 ए ( आईटी – एक्ट ) को कोर्ट ने निरस्त कर दिया है। यह एक बड़ा फैसला है। जो तत्काल लिया गया है। यह धारा सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत अभिव्यक्ती को रोकने का काम करती रही है। जिसके वजह से अनेक लेखकों, व्यंगकारों, विधार्थियों और सामान्य जन को सजा झेलनी पड़ी है।
धारा 66 ए क्या है? – यह धारा सोशल मीडिया पर लिखे जा रहे विषयों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया कानून है। धारा धारा 66 ए ( आईटी – एक्ट ) में सोशल मीडिया (इंटरनेट, मोबाईल, सोशल नेट्वर्किन साईट आदि ) पर आपतिजनक बातें लिखने पर सजा का प्रावधान है। जिस वजह से फेस बुक, इंटरनेट, मोबाईल मैसेजों आदि में लिखे गए व्यंगों और विचारों के कारण अनेक लोगों को सज़ा मिली है।
सुप्रीम कोर्ट का विचार – सोशल मीडिया पर अक्सर लोग अपनी व्यक्तिगत राय और विचार लिखते हैं। अतः धारा 66ए मन की बातों की अभिव्यकी में बाधक है। इसके अलावा बहुत बार, कुछ बातें हल्के तौर पर या व्यंग के रूप में भी लिखी जाती हैं। अतः कोर्ट ने इसे व्यक्तिगत अभिव्यक्ति माना है। व्यक्तिगत अभिव्यक्ति भारत के हर नागरिक का अधिकार है।
सावधानी – पर इसका अर्थ यह नहीं है कि सोशल मीडिया पर आपतिजनक या ऊटपटाँग बातें लिखी जाये। साथ ही व्यक्तिगत हमले या अशोभनीय बातें लिखने से भी बचना चाहिए। भारत के अच्छे नागरिक होने के कारण ऐसी बातें भी नहीं लिखनी चाहिए जिस से समाज में आस्थिरता उत्पन्न हो। अर्थात किसी भी रूप में इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
#Iamhappy वह खुशी का पल ( blog related topic )
हम खुशियों की खोज में न जाने कहाँ-कहाँ भटकते है।बड़े-बड़े चाहतों के पीछे ना जाने कितना परेशान होते हैं। पर, सच पूछो तो खुशी हर छोटी बात में होती है। यह सृष्टि की सबसे बड़ी सच्चाई है।
इस जिंदगी के लंबे सफर में अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। ये खुशियां इन उतार चढ़ाव में हमें हौसला और हिम्मत देती हैं। पर अक्सर हम छोटे-छोटी खुशियों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं, किसी बड़ी खुशी की खोज में। ऐसा एहसास स्वामी विवेकानंद को अपने जीवन के आखरी दौर में हुआ था।
खुशी ऐसी चीज़ नहीं है जो हर समय हमारे पास रहे। यह संभव नहीं है। खुशी और दुख का मेल जीवन के साथ चलता रहता है। हाँ, खुशी की चाहत हमारे लिए प्रेरणा का काम जरूर करती है। कभी किसी के प्यार से बोले दो बोल, बच्चे की प्यारी मुस्कान, फूलों की खूबसूरती या चिड़ियों के चहचहाने से खुशी मिलती है। कभी-कभी किसी गाने को सुन कर हीं चेहरे पर मुस्कान आ जाती हैं या कभी किसी की सहायता कर खुशी मिलती है। जेनिफ़र माइकेल हेख्ट ने अपनी एक पुस्तक “दी हैपीनेस मिथ: द हिस्टीरिकल एंटिडौट टू वाट इस नॉट वर्किंग टुड़े“ में इस बात को बड़े अच्छे तरीके से बताया है।
कठिनाइयों की घड़ी में छोटे-छोटी खुशियाँ उनसे सामना करने का हौसला देती हैं। इस बारे में अपने जीवन की एक घटना मुझे याद आती है। मेरी बड़ी बेटी तब 12 वर्ष की थी। उसके सिर पर बालों के बीच चोट लग गया। जिससे उसका सर फूट गया। मैं ने देखा, वह गिरने वाली है।
घबराहट में मैंने उसे गोद में उठा लिया। जब कि इतने बड़े बच्चे को उठाना सरल नहीं था। मैंने एक तौलिये से ललाट पर बह आए खून को पोछा। पर फिर खून की धार सिर से बह कर ललाट पर आ गया। वैसे तो मैं जल्दी घबराती नहीं हूँ। पर अपने बच्चे का बहता खून किसी भी माँ के घबराने के लिए काफी होता है। इसके अलावा मेरे घबराने की एक वजह और भी थी । बालों के कारण चोट दिख नहीं रहा था। मुझे लगा कि सारे सिर में बहुत चोट लगी है।
मेरी आँखों में आँसू आ गए। आँखें आँसू से धुँधली हो गई। मैं धुँधली आँखों से चोट को ढूँढ नहीं पा रही थीं। मेरी आँखों में आँसू देख कर मेरी बेटी ने मेरी हिम्मत बढ़ाने की कोशिश की।
उसने मेरे गालों को छू कर कहा- “ मम्मी, तुम रोना मत, मैं बिलकुल ठीक हूँ’। जब मैंने उसकी ओर देखा। वह मुस्कुरा रही थी। मैं भी मुस्कुरा उठी। उसकी दर्द भरी उस मुस्कुराहट से जो ख़ुशी मुझे उस समय मिली। वह अवर्णनीय है। मुझे तसल्ली हुई कि वह ठीक है। उससे मुझे हौसला मिला। मेरा आत्मविश्वाश लौट आया। उसकी मुस्कान ने मेरे लिए टॉनिक का काम किया। मैंने अपने आँसू पोछे और घबराए बिना, सावधानी से चोट की जगह खोज कर मलहम-पट्टी किया और फिर उसे डाक्टर को दिखाया।
मुस्कुरा कर देखो तो सारा जहां हसीन है,
वरना भिगी पलकों से तो आईना भी धुंधला दिखता है।
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शुभ नव वर्ष– Happy New Year (हिंदी या चंद्र कैलेंडर )
आज हिन्दी कैलेंडर के मुताबिक नया साल शुरू हो रहा है। यह प्राचीन हिंदू परंपरा के आधार पर आधारित एक चंद्र कैलेंडर है। यह वर्ष / विक्रम संवत् 2072 शुरू हो रहा है। हमारे त्योहार की तिथियाँ इस पर हीं आधारित होतीं हैं।
विक्रम संवत् उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य द्वारा स्थापित कैलेंडर है। इसी दिन विक्रमादित्य ने उज्जैन पर आक्रमण कर शकों को भगाया था और उस दिन से इस कैलेंडर का चलन शुरू किया था। यह चंद्र महीने और सूर्य के नक्षत्रों पर आधारित है। यह चैत्र के महीने में नया चाँद के पहले दिन से शुरू होता है। यह प्रायः अंग्रेज़ी के मार्च-अप्रैल में पड़ता है। इस दिन से नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि का त्योहार भी शुरू होता है। यह नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर है।
इस्लामी कैलेंडर या हिजरी कैलेंडर, पारसी कैलेंडर, मराठी नव वर्ष – गुड़ी पड़वा, कश्मीरी नया साल- नवरस, पंजाब का वैशाखी, ईसाई परंपरा या अँग्रेजी कैलेंडर आदि अनेकों कैलेंडर है।
तिथि की गणना के लिए बनाए गए कैलेंडरों में कुछ की गणना सूर्य के उगने और डूबने से होता है, जैसे- अँग्रेजी कैलेंडर। ठीक इसी प्रकार अन्य कैलेंडरों में चंद्रमा के निकलने और अस्त होने से दिन की गिनती होती है। जैसे विक्रम संवत या हिन्दी कैलेंडर पूर्णिमा या अमावस्या से दिनों की गिनती करते है।
अच्छा है हमारे पास नया वर्ष मनाने के अवसर अनेकों बार आते है। पर इन सबों में सर्वाधिक प्रचलित नव वर्ष है- एक जनवरी या अँग्रेजी कैलेंडर। पर क्या यह अच्छा नहीं है कि हम अपने-अपने नव वर्ष को भी उत्साह और जोश से मनाएँ?
#BloggerDreamTeam सुंदर बन- राजसी बाघों का साम्राज्य- यात्रा वृतांत ( यात्रा वृतांत )
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हमारी बहुत अरसे से सुंदरबन / वन जाने की कामना थी। हमने पश्चिम-बंगाल, कोलकाता, पर्यटन विभाग द्वारा चलाये जा रहे सुंदरबन सफारी कार्यक्रम का टिक़ट ले लिया। इस कार्यक्रम में रहने, खाने और सुंदरबान के विभिन्न पर्यटन स्थल दिखाने की व्यवस्था शामिल है। इसमें एक गाईड भी साथ में होता है।जो यहाँ की जानकारी देता रहता है।
इस सफ़ारी के टिकट अलग अलग कार्यक्रमों में उपलब्ध है। जिसके टिकटों का मूल्य 3400 से 7000 रुपये तक ( प्रति व्यक्ति) है। एक रात – दो दिन तथा दो रात तीन दिन के कार्यक्रम होते हैं।यह कार्यक्रम ठंढ के मौसम में ज्यादा लोकप्रिय है।
बीस फरवरी (20-02-2015) का दिन मेरे लिए खास था।इस दिन मेरी बेटी चाँदनी का जन्मदिन भी था। उस दिन ही सुंदरबन जाने का कार्यक्रम हमने बनाया । मैं और मेरे मेरे पति अधर सुबह आठ बजे टुरिज़्म सेंटर, बी बी डी बाग, कोलकाता पहुँचे। वहां से 3-4 घंटे की एसी बस की यात्रा कर सोनाखली पहुँचे। इस यात्रा में हमें नाश्ता और पानी का बोतल दिया गया। सोनाखली पहुँच कर, बस से उतार कर दस मिनट पैदल चल कर हम नदी के किनारे पहुँचे। जहाँ से नौका द्वारा हमें एम वी (मरीन वेसल) चित्ररेखा ले जाया गया। यह काफी बड़ा जलयान है। इसमें 46 लोगों के रहने और खाने-पीने का पूरा इंतज़ाम है। हमारे ट्रिप में 22 लोग थे। यहाँ से हमारी सुंदरबन जल यात्रा आरंभ हुई।
सुंदरबन नाम के बारे में अनेक मत है। एक विचार के मुताबिक इसकी खूबसूरती के कारण इसका नाम सुंदरबन पड़ा। इस नाम का एक अन्य कारण है, यहाँ बड़ी संख्या में मिलनेवाले सुंदरी पेड़ । कुछ लोगों का मानना है, यह समुद्रवन का अपभ्रंश है। एक मान्यता यह भी है की यह नाम यहाँ के आदिम जन जातियों के नाम पर आधारित है।
जहाज़ तीन तालों वाला था। निचले तल पर रसोई थी। वहाँ कुछ लोगों के रहने की व्यवस्था भी थी। दूसरे तल पर भी रहने का इंतज़ाम था। ट्रेन के बर्थ जैसे बिस्तर थे। जो आरामदायक थे। सबसे ऊपर डेक पर बैठने और भोजन-चाय आदि की व्यवस्था थी। वहाँ से चरो ओर का बड़ा सुंदर नज़ारा दिखता था। जैसे हम जहाज़ पर पहुँचे। हमें चाय पिलाया गया। दोपहर में बड़ा स्वादिष्ट भोजन दिया गया। संध्या चाय के साथ पकौड़ी का इंतज़ाम था। रात में भी सादा-हल्का पर स्वादिष्ट भोजन था।
सुंदरवन बंगाल का सौंदर्य से पूर्ण प्राकृतिक क्षेत्र है। यह दुनिया में ज्वार-भाटा से बना सबसे बड़ा सदाबहार जंगल है। यह भारत के पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में है। इसका बहुत बड़ा भाग बंगला देश में पड़ता है। यह अभयारण्य बंगाल के 24 परगना जिले में है।
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिणी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। यह एक राष्ट्रीय उद्यान, बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्फ़ीयर रिज़र्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र मैन्ग्रोव के घने जंगलों से घिरा हुआ है और रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। यह बहुत बड़े क्षेत्र में फैला है।
सुंदरवन यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व विरासत है । साथ ही प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र है। सुंदरवन तीन संरक्षित भागों में बंटा है – दक्षिण,पूर्व और पश्चिम। सुंदरवन में राष्ट्रीय उद्यान, बायोस्फीयर रिजर्व तथा बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह घने सदाबहार जंगलों से आच्छादित है साथ हीं बंगाल के बाघों की सबसे बड़ी आबादी वाला स्थान भी है। सुंदरबन के जंगल गंगा, पद्मा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों का संगम स्थल है। यह बंगाल की खाड़ी पर विशाल डेल्टा है। यह सदियों से विकसित हो रहा प्रकृति क्षेत्र है। जिसकी स्वाभाविक खूबसूरती लाजवाब है।
यह विशेष कर रॉयल बंगाल टाइगर के लिए जाना जाता है। 2011 बाघ की जनगणना के अनुसार, सुंदरबन में 270 बाघ थे। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या १०३ है। यहाँ पक्षियों की कई प्रजातियों सहित कई जीवों का घर है। हिरण, मगरमच्छ, सांप, छोटी मछली, केकड़ों, चिंराट और अन्य क्रसटेशियन की कई प्रजातिया यहाँ मिलती हैं। मकाक, जंगली सुअर, मोंगूस लोमड़ियों, जंगली बिल्ली, पंगोलिने, हिरण आदि भी सुंदरवन में पाए जाते हैं।
ओलिव रिडले कछुए, समुद्री और पानीवाले सांप, हरे कछुए, मगरमच्छ, गिरगिट, कोबरा, छिपकली, वाइपर, मॉनिटर छिपकली, हाक बिल, कछुए, अजगर, हरे सांप, भारतीय फ्लैप खोलीदार कछुए, पीला मॉनिटर, वाटर मॉनिटर और भारतीय अजगर भी सुंदरवन में रहतें हैं।
लगभग दो घंटे के जल यात्रा के बाद मिट्टी के एक ऊँचे टीले पर हमें एक विशालकाय मगरमच्छ आराम करता दिखा। कहीं दूर कुछ जल पक्षी- सीगल नज़र आए। वहाँ से आगे हमें सुधन्यखली वाच-टावर पर छोटी नाव से ले जाया गया। ये टावर काफी सुराक्षित बने होते हैं।

प्रत्येक टावर में देवी का एक छोटा मंदिर बना है। दरअसल सुंदरवन के निवासी इस जंगल की देवी की पूजा करने के बाद हीं जंगल में प्रवेश करते हैं। अन्यथा वनदेवी नाराज़ हो जातीं हैं। उनकी ऐसी मान्यता है।
यहाँ ऊँचाई से, दूर-दूर तक जंगल को देखा जा सकता है। यहाँ चरो ओर पाया जाने वाला पानी नमकीन होता है। ज्वार की वजह से समुद्र का पानी नदियों मे आ जाता है। प्रत्येक वाच-टावर के पास जंगली जानवरों के लिए मीठे पानी का ताल बना हुआ है। अतः यहाँ पर अक्सर जानवर पानी पीने आते हैं। इस लिए वाच टावर के पास जानवर नज़र आते रहते है।
इस टावर पर नदी किनारे की दलदली गीली मिट्टी पर ढ़ेरो लाल केकड़े और मड़स्कीपर मछलियाँ दिखी। मड़स्कीपर मछलियाँ गीली मिट्टी पर चल सकती हैं। ये अक्सर पेड़ों पर भी चढ़ जाती हैं। बिजली रे, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प, कंटिया, नदी मछली, सितारा मछली, केकड़ा, बजनेवाला केकड़ा, झींगा, चिंराट, गंगा डॉल्फिन, भी यहाँ आम हैं। यहाँ मछली मड़स्कीपर और छोटे-छोटे लाल केकड़े भी झुंड के झुंड नज़र आते हैं।
सुंदरवन एक नम उष्णकटिबंधीय वन है। सुंदरवन के घने सदाबहार पेड़-पौधे खारे और मीठे पानी दोनों में लहलहाते हैं। यहाँ जंगलों में सुंदरी, गेवा, गोरान और केवड़ा के पेड़, जंगली घास बहुतायात मिलते है। डेल्टा की उपजाऊ मिट्टी खेती में काम आती है।

वाच-टावर से जंगल में कुछ हिरण, बारहसिंगा और पक्षी नज़र आए। यहाँ नीचे से ऊपर निकलते जड़ों को पास से देखने का मौका मिला। यहाँ के मैन्ग्रोव की यह विशेषता है। ज्वार-भाटे की वजह से पेड़ अक्सर पानी में डूबते-निकलते रहते हैं। अतः यहाँ के वृक्षों की जडें ऑक्सीजन पाने के लिए कीचड़ से ऊपर की ओर बढ़ने लगती हैं। जगह-जगह पर मिट्टी से ऊपर की ओर निकली काली नुकीली जड़ें दिखती हैं।
2-3 घंटे बाद हम यहाँ से आगे एक ओर वॉच टावर- सजनेखली पर पहुँचे। जहाँ जंगली सूअरों का झुंड दिखा। साथ ही गोह, बंदर, हिरण और कुछ पक्षी दिखे।
रात हो चली थी। डेक पर बैठ कर गाना और कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाम अच्छी कटी। बंगाल के संस्कृतिक जीवन पर सुंदरबान का गहरा प्रभाव है। सुंदरवन वन तथा उसके के देवी-देवताओं का प्रभाव यहाँ के अनेक साहित्य, लोक गीतों और नृत्यों में स्पष्ट दिखता है।
रात में जहाज़ एक जगह पर रोक दिया गया। दुनिया से दूर अंधेरे में, जहाँ चारो ओर पानी ही पानी था। एक अजीब सा एहसास था, वहाँ पर रात गुजरना। अगले दिन सुबह-सुबह ही एक अन्य वाच टावर- दोबांकी जाना था। अतः मैं 5 बजे सुबह उठ कर नहा कर तैयार हो गई। वहाँ की सारी व्यवस्था अच्छी थी। पर बाथ रूम छोटे थे और अपेक्षित सफाई नहीं थी।
सुबह की चाय पीने तक हम वाच-टावर पहुँच गए थे। यह टावर विशेष रूप से बाघों का क्षेत्र था। हिरण, बंदर जैसे जानवर तो दिखे। पर बाघ नहीं नज़र आया। आज के समय में बाघ एक दुर्लभ प्राणी है और यहाँ पर भी कभी-कभी हीं दिखता है। बाघ के हमलों सुंदरवन के गाँव में अक्सर सुनने में आता है। लगभग 50 लोग हर साल बाघों के हमले से मारे जाते हैं।
यहाँ पर सुंदरबान संबन्धित एक दर्शनीय म्यूजियम है और रहने के लिए कमरे भी है। इन कमरों की बुकिंग पहले से करना पड़ता है। यहाँ हमने सुंदरी के पेड़ और यहाँ पाये जाने वाले अन्य वृक्षों को निकट से देखा।

वहाँ से लौटते-लौटते दोपहर हो रही थी। हमें गरमा गरम भोजन कराया गया। अब हमें वापस सोनाखलीले जाया गया। वहाँ से हमें बस द्वारा वापस कोलकाता पहुंचाया गया। रास्ते में हल्का नाश्ता उपलब्ध करवाया गया।
दो दिन और एक रात जलयान पर जंगलों और नदियों के बीच गुज़ारना मेरे लिए एक नया अनुभव है। यहाँ शहर का शोर-शराबा
नहीं होता है, बल्कि प्रकृति की सौंदर्य का अनुभव होता है। नदियों के जल की कलकल , पक्षियों के कलरव और जंगल की सरसराहट इतने स्वाभाविक रूप से मैंने अपने जीवन में कभी अनुभव नही किया था।
एक अद्भुत, खूबसूरत यात्रा समाप्त हुई। यह एक यादगार और खुशनुमा यात्रा थी।
#BloggerDreamTeam – Food & Travel Carnival
TRAVEL – Unforgettable travel story.
देवदासी – जगन्नाथ मंदिर
आज (20.3.2015) के अख़बार ‘दी इंडियन एक्स्प्रेस’ के पृष्ठ दो पर एक खबर पढ़ने को मिली – “ भगवान जगन्नाथ की अंतिम पत्नी की मृत्यु”। शशिमणी देवी, अंतिम जीवित महरि की मृत्यु 93 वर्ष के उम्र में हो गई। उनके माता-पिता ने 7 वर्ष की आयु में साड़ी बंधन समारोह के द्वारा उनका विवाह भगवान जगन्नाथ से कर दिया था।
महरि उन देवदासियों को बुलाया जाता है, जो ओडिशा के भगवान जगन्नाथ के मंदिर में नृत्यप्रस्तुत करती थीं। महरि नृत्य लगभग एक सहस्राब्दी पुराना है। बारहवीं सदी में गंगा शासकों ने देवता के लिए इस नए समारोह की शुरुआत की थी। फिर यह जगन्नाथ मंदिर में दैनिक अनुष्ठान का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। अनेक परिवार के लोग अपनी पुत्रियों की शादी बचपन में भगवान जगन्नाथ के साथ कर देते थे। ये देवदासियां आजीवन इस मंदिर से जुड़ी रहतीं थीं।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान जगन्नाथ को खुश करने के लिए जयदेव के गीत गोविन्द पर महरि नृत्य प्रस्तुत किया जाता था। नर्तकियों को विशेष गहने, विशेष रूप से बुनी साड़ी और फूलों से सजाया जाता था।
स्वतंत्र भारत में देवदासी प्रणाली के उन्मूलन के बाद यह नृत्य जगन्नाथ मंदिर में बंद कर दिया गया। अब महरि नृत्य को ओडिसी के शास्त्रीय नृत्य रूप में एक सम्मानजनक दर्जा दे दिया गया है। यह मंच पर नृयांगनाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है ।

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