वह कभी आइने में अपना सुकुमार सलोना चेहरा देखती
कभी अपनी माँ को।
दिल में छाले, सजल नेत्र, कमसिन वयस, अल्पशिक्षित
कुछ माह की विवाहिता,
पति के चरित्रहिनता व बदमिजाजी से तंग,
वापस आई पिता ग़ृह, अपना घर मान कर।
माँ ने वितृषणा से कहा –
पति को तुम पसंद नहीं हो।
तुम्हारा चेहरा नहीं, कम से कम भाग्य तो सुन्दर होता।
वह हैरान थी, माँ तो विवाह के पहले से जानती थी
उसके ससुराल की कलकं-कथा,
अौर कहा था – घबराओ नहीं,
जल्दी हीं सुधर जायेगा।
“मेहंदी रंग लायेगी”
फिर आज़ यह उसके भाग्य अौर चेहरे की बात कहां से आई?

images from internet.

You must be logged in to post a comment.