
लोग
ज़िंदगी की राहों में
लोगों को आने दो
….. जाने दो।
सिर्फ़ उनसे मिले
सबक़ अपना लो।
राहों में मिले टेढ़े-मेढ़े
लोग सीधे चलने की
सबक़ औ समझ दे जाएँगे।

लोग
ज़िंदगी की राहों में
लोगों को आने दो
….. जाने दो।
सिर्फ़ उनसे मिले
सबक़ अपना लो।
राहों में मिले टेढ़े-मेढ़े
लोग सीधे चलने की
सबक़ औ समझ दे जाएँगे।

Image – Aneesh
पहली बार देखा और सुना साल में दो बार दीवाली!
दुःख, दर्द में बजती ताली.
साफ़ होती गंगा, यमुना, सरस्वती और नादियाँ,
स्वच्छ आकाश, शुद्ध वायु,
दूर दिखतीं बर्फ़ से अच्छादित पर्वत चोटियाँ.
यह क़हर है निर्जीव मक्खन से कोरोना का,
या सबक़ है नाराज़ प्रकृति का?
देखें, यह सबक़ कितने दिन टिकता है नादान, स्वार्थी मानवों के बीच.

थका हरा सूरज रोज़ ढल जाता है.
अगले दिन हौसले से फिर रौशन सवेरा ले कर आता है.
कभी बादलो में घिर जाता है.
फिर वही उजाला ले कर वापस आता है.
ज़िंदगी भी ऐसी हीं है.
बस वही सबक़ सीख लेना है.
पीड़ा में डूब, ढल कर, दर्द के बादल से निकल कर जीना है.
यही जीवन का मूल मंत्र है.

ज़िंदगी बङी सख़्त और ईमानदार गुरु है.
अलग-अलग तरीक़े से पाठ पढ़ा कर इम्तिहान लेती है…..
और तब तक लेती है,
जब तक सबक़ सीख ना जाओ.
अभी का परीक्षा कुछ नया है.
रिक्त राहें हैं, पर चलना नहीं हैं.
अपने हैं लेकिन मिलना नहीं है.
पास- पड़ोस से घुलना मिलना नहीं है.
इस बार,
अगर सीखने में ग़लती की तब ज़िंदगी पहले की तरह पाठ दुहराएगी नहीं …
और फिर किसी सबक़ को सीखने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी.
कोरोना के टेस्ट में फ़ेल होना हीं पास होना है.
पर किसी के पास-पास नहीं होना है.
जी लो ज़िंदगी, जैसी सामने आती है.
सबक़ लो उस से …..
क्योंकि ज़िंदगी कभी वायदे नहीं करती.
इसलिए उससे शिकायतें बेकार है.
और जिन बातों को हम बदल नहीं सकते.
उनके लिए अपने आप से शिकायतें बेकार है.
छोटी-छोटी खुशियां हीं बड़ी खुशियों में बदल जाती हैं
जैसे छोटी दिवाली….से बड़ी दिवाली ।

किताब-ए-ज़िंदगी
का पहला सबक़ सीखा।
रिश्तों को निभाने के लिए,
अपनों की गिलाओ पर ख़ामोशी के
सोने का मुल्लमा चढ़ना अच्छा है।
पर अनमोल सबक़ उसके बाद के
पन्नों पर मिला –
सोने के पानी चढ़ाने से पहले
देखो तो सही…
ज़र्फ़….सहनशीलता तुम्हारी,
कहीं तुम्हें हीं ग़लत इल्ज़ामों के
घेरे में ना खड़ा कर दे.

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