जो बनते रहें हैं अपने.
कहते हैं पहचान नहीं पाए तुम्हें !
आँखों पर गुमान की पट्टी ऐसी हीं होती है.
अच्छा है अगर लोंग पहले पहचान लें ख़ुद को।
ज़िंदगी के राहों में,
हम ने बख़ूबी पहचान लिया इन्हें!
जो बनते रहें हैं अपने.
कहते हैं पहचान नहीं पाए तुम्हें !
आँखों पर गुमान की पट्टी ऐसी हीं होती है.
अच्छा है अगर लोंग पहले पहचान लें ख़ुद को।
ज़िंदगी के राहों में,
हम ने बख़ूबी पहचान लिया इन्हें!
ढेरों बातें और यादें बटोरे
गिले-शिकवे की पोटलियाँ समेटे
इंतज़ार में, राहों में पलके बिछाये बैठे थे …..
उनका आना, नज़रें उठाना और गिराना
सारे ल़फ्ज ….अल्फाज़ चुरा ले गया।
ज़िन्दगी बहते झरने जैसा ले चली अपने संग
हमने कहा हमें अपनी राह ना चलाओ.
हम तुम्हें अपने राह ले चलते है…..
हमें जीना है अपनी ज़िंदगी – अपनी राहों पर
ना कि किसी अौर के बनाये राह पर ….