
खुले आसमान में,
जलद …. जल भरे हलके
बादलों को आज़ाद,
ऊपर उठते देखा है।
सात रंग बिखेरते
इंद्रधनुष बनते-बनाते
देखा है।
जैसे हीं वे अपने
अंदर के पानी को बोझ
बना लेतें हैं।
पल भर में पानी बन
वही जा गिरते हैं।
जहाँ से ऊँचाइयों
पर पहुँचें थे।

खुले आसमान में,
जलद …. जल भरे हलके
बादलों को आज़ाद,
ऊपर उठते देखा है।
सात रंग बिखेरते
इंद्रधनुष बनते-बनाते
देखा है।
जैसे हीं वे अपने
अंदर के पानी को बोझ
बना लेतें हैं।
पल भर में पानी बन
वही जा गिरते हैं।
जहाँ से ऊँचाइयों
पर पहुँचें थे।

थका हरा सूरज रोज़ ढल जाता है.
अगले दिन हौसले से फिर रौशन सवेरा ले कर आता है.
कभी बादलो में घिर जाता है.
फिर वही उजाला ले कर वापस आता है.
ज़िंदगी भी ऐसी हीं है.
बस वही सबक़ सीख लेना है.
पीड़ा में डूब, ढल कर, दर्द के बादल से निकल कर जीना है.
यही जीवन का मूल मंत्र है.

आसमान के बादलों से पूछा –
कैसे तुम मृदू- मीठे हो..
जन्म ले नमकीन सागर से?
रूई के फाहे सा उङता बादल,
मेरे गालों को सहलाता उङ चला गगन की अोर
अौर हँस कर बोला – बङा सरल है यह तो।
बस समुद्र के खारे नमक को मैंने लिया हीं नहीं अपने साथ।
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