बहते झरने का पीछा

बहते झरने का पीछा किया .

नीलाभ की में डूब

कभी ऊपर कभी नीचे बलखाती

चट्टानों से गिरती , टकराती , बहती

कहीं भंवर , कहीं छिछली ,कहीं गहरी ,

अंत में जा गिरी नदी अौर फिर सागर में …….

लगा यह तो जिंदगी बह रही है

जीवन यात्रा के रुप में।

ज़िन्दगी के रंग -38

ज़िन्दगी बहते झरने जैसा ले चली अपने संग

हमने कहा हमें अपनी राह ना चलाओ.

हम तुम्हें अपने राह ले चलते है…..

हमें जीना है अपनी ज़िंदगी – अपनी राहों पर

ना कि किसी अौर के बनाये राह पर ….