जिंदगी के रंग -207

प्रश्न  बङा कठिन है।

 दार्शनिक भी है, तात्त्विक भी है।

पुराना  है,  शाश्वत-सनातन भी  है।

तन अौर आत्मा या कहो रुह और जिस्म !!

इनका  रिश्ता है  उम्रभर का।

खोज रहें हैं  पायें कैसे?

 दोनों को एक दूसरे से मिलायें कैसे?

कहतें हैं दोनों  साथ  हैं।

फिर भी खोज रहें हैं – मैं शरीर हूँ या आत्मा? 

चिंतन-मनन से गांठें खोलने की कोशिश में,

 अौर उलझने बढ़ जातीं हैं।

मिले उत्तर अौर राहें, तब बताना।

 पूरे जीवन साथ-साथ हैं,

पर क्यों मुश्किल है ढूंढ़ पाना ?

 

 

धर्म… मजहब…

धर्म…मजहब …वह महासागर है.

जो मानव मन में विकसित होता है।

अनंत रूपों में, विविधताएँ लिये।

पशु से प्रकृतिक पूजा……

व्यक्ति से अव्यक्ति,  आकार से निराकार रूप,

सूर्य, चांद, संगीत, नृत्य सभी को पूजते हैं।

मूर्त से अमूर्त, देवी देवताओं से सर्वोच्च प्रभु तक,

यह एक विस्तृत परंपरा है,

जो चिंतन है, जिज्ञासा  है

इसकी पहुँच स्थुल से सुक्ष्म आत्मिक मंडल तक है,

अंतर्मन तक है।