दूरियाँ और दीवारें

आदत बन रहीं हैं दूरियाँ और दीवारें.

तमाम जगहों पर पसरा है सन्नाटा.

कमरों में क़ैद है ज़िंदगी.

किसी दरवाजे, दीवारों की दरारों से

कभी-कभी रिस आतीं हैं कुछ हँसी….कुछ आवाज़ें.

एक दूसरे का हाथ थामे खड़ी ये चार दीवारें,

 थाम लेतीं हैं हमें भी.

इनसे गुफ़्तुगू करना सुकून देता है.

 

 

यादों के चंदन

 चंदन के साथ रखे थे कुछ

यादें अौ

ख़्वाब !

कुछ ख़्वाब

पूरे हुए,

कुछ अधूरे हैं।

पर संदल की  ख़ुशबू  से भर गये  हैं।

ज़िंदगी के रंग – 44

आज

क्या कुछ ख़ास बात है ?

नज़ारे ख़ूबसूरत लग रहे है,

लोग प्यारे लग रहे है,

मौसम ख़ुशगवार सा है

लगता है ……

शायद आज दिल ख़ुश है।

कहाँ से इंद्रधनुष निकला है ?

बरसात की हलकी फुहार

के बाद सात रंगों की

खूबसूरती बिखेरता इंद्रधनुष निकल आया।

बादलों के पीछे से सूरज की किरणें झाँकतीं

कुछ खोजे लगी….. बोली….

खोज रहीं हूँ – कहाँ से इंद्रधनुष निकला है ?

इंद्रधनुष की सतरंगी आभा खिलखिला कर हँसी अौर

कह उठी – तुम अौर हम एक हीं हैं,

बस जीवन रुपी वर्षा की बुँदों से गुजरने से

मेरे अंदर छुपे सातों रंग दमकने लगे हैं।