दूरियाँ और दीवारें

आदत बन रहीं हैं दूरियाँ और दीवारें.

तमाम जगहों पर पसरा है सन्नाटा.

कमरों में क़ैद है ज़िंदगी.

किसी दरवाजे, दीवारों की दरारों से

कभी-कभी रिस आतीं हैं कुछ हँसी….कुछ आवाज़ें.

एक दूसरे का हाथ थामे खड़ी ये चार दीवारें,

 थाम लेतीं हैं हमें भी.

इनसे गुफ़्तुगू करना सुकून देता है.

 

 

जिंदगी के रंग – 203

जिंदगी में हर रिश्ते एक दूसरे से

मुकाबला,आज़माइशें या

बराबरी करने के लिये नहीं होते हैं।

कुछ रिश्ते एक- दूसरे के हौसले इज़ाफ़ा करने अौर

कमियों को पूरा करने के लिये भी होते हैं।।

तभी ये रिश्तों को दरख्तों के जड़ों की तरह थामे रखते हैं।