रेत के कण ( कविता ) March 15, 2015June 5, 2018 Rekha Sahay18 Comments क्या रेत के कणों को देख कर क्या यह समझ आता है कि कभी ये किसी पर्वत की चोटी पर तने अकडे महा भीमकाय चट्टान होंगे या कभी किसी विशाल चट्टान को देख कर मन में यह ख्याल आता है कि समय की मार इसे चूर-चूर कर रेत बना देगी? नहीं न? इतना अहंकार भी किस काम का? तने रहो, खड़े रहो पर विनम्रता से। क्योंकि यही जीवन चक्र है। जो कभी शीर्ष पर ले जाता है और अगले पल धूल-धूसरित कर देता है। Rate this:Share this:FacebookMorePinterestTumblrLinkedInPocketRedditTwitterTelegramLike Loading...
You must be logged in to post a comment.