कैलेंडर कई बदल जाते है।
पर कुछ तारीख़ें दिल में ठहर जाती है।
वक़्त आगे बढ़ जाता है।
पर रूह उसी मुक़ाम
सज्दा करती रह जाती है।
(12 Oct- Remembering my husband on his death anniversary!)

कैलेंडर कई बदल जाते है।
पर कुछ तारीख़ें दिल में ठहर जाती है।
वक़्त आगे बढ़ जाता है।
पर रूह उसी मुक़ाम
सज्दा करती रह जाती है।
(12 Oct- Remembering my husband on his death anniversary!)

अगर आप हिन्दी पढ़ने के शौकीन हैं, तो आपके लिए खुशख़बरी है! हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका प्रतिज्ञान अगले दो दिनों के लिए ऑनलाइन निःशुल्क उपलब्ध है।
इसमें प्रकाशित सुंदर लेख और कविताएँ आप बिना किसी शुल्क के पढ़ सकते हैं।
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मेरी एक कहानी “कर्ण” प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यिक पत्रिका प्रतिज्ञान में प्रकाशित हुई है।
यह कहानी मेरे हृदय के बहुत निकट है — महाभारत के कर्ण के अंतर्मन, उसकी उदारता और मौन गौरव को शब्द देने का मेरा एक छोटा-सा प्रयास है।
इस रचना का इस पत्रिका में स्थान पाना मेरे लिए हर्ष और प्रेरणा दोनों है।
कहानी की लिंक नीचे दी गई है।
I’m delighted to share that my story “Karn” has been published in a renowned Hindi Literary Magazine- Pratigyan.
This story, close to my heart,explores the depth and silent strength of Karna — one of the most inspiring figures from the Mahabharata.
It’s a small but meaningful milestone in my writing journey, and I’m happy to share this joy with all of you.
The link to the magazine and the story is also given below.
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सूर्य की रोशनी से चंद्रमा दमकता है।
कहते हैं – सूर्य हर दिन अपनी
सुषुम्ना किरणों का थोड़ा-थोड़ा अंश
चंद्रमा को दे उसे कलाओं से सजाता है।
हर पूर्णिमा, पूर्णचंद्र पंद्रह कलायुक्त हो जाता है।
पर शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि चंद्रमा
सोलह कलायुक्त हो, अमृतमय हो जाता है,
और चरम ब्रह्मांडिय ऊर्जा से भर जाता है।
ऐसी रातें राज, रहस्य, वैभव से
भर रौशन चाँद अमृत बरसाता है ।
आकाश-चेतना व चंद्र-ऊर्जा मानव
के तन-मन-रूह को सिक्त कर जाती है।
समुद्र मंथन में शरद पूर्णिमा को अवतरित हुई
सोलह कलायुक्त महालक्ष्मी, राधारानी
संग चंद्रवंशी कृष्ण ने इस कौमुदी पूर्णिमा को
चंद्रमा के अमृतमय रौशनी में महारास रचाया।
यमुना-निकुँज में बंसी धुन गूंजी उठी –
आश्विन महापुर्णिमा, व्रज-वीथकाओं में व्रजभाषा में गूंज उठी …..
कोजागरी? – कौन जाग रहा ? पुकार सुन गोपियों ने
कोजागरी पूर्णिमा की आध्यात्मिक चाँदनी में रास रचाया।
On Request English Translation (with the help of AI)
Sharad Purnima
The moon glows with the light of the sun.
It is said that every day, the sun gives a small part of its Sushumna rays to the moon,
adorning it with its divine phases/qualities.
On every full moon night, the moon becomes complete — filled with fifteen phases/qualities.
But on the sacred night of Sharad Purnima,
the moon attains its sixteenth and final phase/qualities.
becoming nectar-filled, radiant with the supreme cosmic energy.
On such a — mysterious and divine night —
the resplendent moon showers elixir-like light upon the earth.
The sky’s consciousness / cosmic energy and moon’s lunar energy
soak and awaken the human body, mind, and soul.
From the great Samudraa Manthan (churning of the ocean),
on Sharad Purnima emerged Mahalakshmi, full with sixteen divine qualities.
With Mahalakshmi – Radha Rani and the lunar Krishna celebrated
this Kaumudi Purnima — the radiant festival of moonlight —
in the blissful Maahaaraas beneath the nectar-drenched sky.
By the banks of Yamuna, the flute of Krishna echoed —
on the grand full moon night of Ashwin month.
The call of “Kojagari?” — “Who is awake?” resounded,
and the Gopis, hearing it, awakened in love and devotion,
dancing the divine Raas in the moonlit grace of Kojagari Purnima.



Sarvpitra Amavasya
when we offer water
with our thumb for ancestors,
it is believed to bring
them peace and satisfaction.
In the south-west direction or under the
peepal tree, an oil lamp is lit —
symbolizing light on their path.
Whether these offerings truly reach them
or not, no one can say for sure.
But this amazing and beautiful tradition —
whether seen as spirituality, science,
or psychology — surely brings
deep peace to the heart and soul.
।।ॐ Pitrudevaya नमः।।
मैं एक नेचर राइटर (NCF) भी हूँ। मेरा यह लेख एक अख़बार में प्रकाशित हुआ है, जिसका लिंक यहाँ साझा कर रही हूँ। धन्यवाद। https://www.amarujala.com/columns/blog/how-climate-change-affect-butterflies-life-cycle-know-its-impact-2025-09-09?pageId=1
बसंत के रंगीन दूत
जलवायु परिवर्तन और तितलियाँ
तितलियाँ केवल सुंदरता की प्रतीक नहीं, बल्कि प्रकृति की नाजुक कड़ी हैं। शोध और कीट वैज्ञानिक (Entomologists) बताते हैं कि तितलियाँ परागण के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इनका जीवन पूरी तरह से मौसम और तापमान पर निर्भर करता है। यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन इनकी संख्या, प्रवास, जीवन चक्र और परागण प्रक्रियाओं पर सीधा असर डालता है।
जैसे-जैसे तापमान असामान्य होता है या वर्षा का पैटर्न बिगड़ता है, कुछ तितलियाँ अधिक प्रजनन करती हैं, तो कुछ विलुप्ति के कगार पर आ जाती हैं। तितलियाँ पर्यावरण संतुलन, कृषि और जैव विविधता के लिये बेहद महत्वपूर्ण हैं।
लेमन इमिग्रेंट बटरफ्लाई (Catopsilia pomona)
यह तितली दक्षिण-पश्चिम एशिया की मूल निवासी है, पर अब भारत के अनेक भागों में पाई जाती है। इसका रंग हल्का पीला होता है, और पंखों के किनारे काले होते हैं। यह एक प्रवासी प्रजाति है, जो मार्च से जून के बीच, मानसून के पहले प्रवास करती है।
इनकी जनसंख्या मौसम में थोड़े से बदलाव से भी तेजी से प्रभावित होती है, इसलिए इसे जलवायु संकेतक प्रजाति (Climate Indicator Species) कहा जाता है। ये तितलियाँ सेनना (Senna) या कैसिया (Cassia) पौधों पर अंडे देती हैं। 3-4 दिनों में अंडों से लार्वा निकलते हैं और लगभग दस दिनों में प्यूपा बन जाते हैं। प्यूपा रेशमी धागों से पत्तियों के डंठलों से लटकते हैं। फिर इनमें से नन्हीं तितलियाँ निकलती हैं, जो जीवन के चक्र को आगे बढ़ाती हैं।
लोककथा:
एक प्राचीन गाँव की लोककथा कहती है कि एक बार सावन के बाद भी अमलतास नहीं खिला। गाँव की एक बच्ची ने तितलियों को पुकारा। थोड़ी देर में पीली-पीली तितलियाँ झुंड में आईं और अमलतास के पीले फूल खिल कर झूम उठे। तभी से मान्यता है — “अमलतास तब तक नहीं खिलता, जब तक ये तितलियाँ उसके चारों ओर नृत्य न करें।“
तितलियाँ नारी शक्ति, जीवन की जननी और प्रकृति की चेतना की प्रतीक मानी जाती है।
मॉटल्ड इमिग्रें टबटरफ्लाई (Catopsilia pyranthe)
इस तितली को Common Emigrant Butterfly भी कहा जाता है। यह अत्यंत फुर्तीली और प्रवासी स्वभाव की होती है। सफेद या हल्का पीला रंग, और पंखों पर हल्के धब्बे — इसकी पहचान है। यह फूलों से रस (nectar) पीते हुए परागण करती है। पराग इसके पैरों से चिपककर एक फूल से दूसरे फूल तक जाता है, जिससे नए बीज और फल उत्पन्न होते हैं।
यह तितली लंबी दूरी तय करके नए इलाकों में अंडे देती है — जहां नवजीवन पनपता है। परन्तु जलवायु परिवर्तन ने इनके जीवन और पौधों के विकास के बीच संतुलन बिगाड़ दिया है। जब होस्ट प्लांट और तितली के जीवन चक्र का समय मेल नहीं खाता, तो परागण प्रभावित होता है।
लोकविश्वास:
ग्रामों में कहते हैं, “बसंत की कोई तारीख नहीं होती।वो इन तितलियों के सफेद रेशमी पंखों पर सवार हो कर खेतों में उतरता है।“
जब ये झुंड में उड़ती हैं तब किसान इन्हें सरसों के पीले फूलों पर देखता है, तो वह सोचता है:
“अब ऋतु बदलेगी, अब धरती मुस्कुराएगी।“
जलवायु परिवर्तन के कारण:
इसके परिणाम:
समाधान:
निष्कर्ष:
तितलियाँ न केवल फूलों की सुंदरता बढ़ाती हैं, बल्कि धरती के लिए जीवन का संदेश लाती हैं। इनका संरक्षण सिर्फ एक प्रजाति का नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण है। क्योंकि जब रंग-बिरंगी तितली एक फूल से दूसरे फूल पर पराग लेकर उड़ती है तभी प्रकृति मुस्कुराती हैं — और तभी जीवन खिलता है।
लेखिका:
Dr. Rekha Rani, Writer | Counsellor | Ex-Professor फ़ोटोग्राफर : पवन दामोरे, स्थान: पुणे, महाराष्ट्र, भारत.
Climate Change”. – Theme: Effects of Climate Change – The articles must focus on the effects of climate change on specific topics or species.


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