
चढ़ते सूरज के कई हैं उपासक,
पर वह है डूबता अकेला।
जलते शोले सा तपता आफ़ताब हर रोज़ डूबता है
फिर लौट आने को।
इक रोज़ आफ़ताब से पूछा –
रोज़ डूबते हो ,
फिर अगले रोज़
क्यों निकल आते हो?
कहा आफ़ताब ने –
इस इंतज़ार में,
कभी तो कोई डूबने से
बचाने आएगा।

चढ़ते सूरज के कई हैं उपासक,
पर वह है डूबता अकेला।
जलते शोले सा तपता आफ़ताब हर रोज़ डूबता है
फिर लौट आने को।
इक रोज़ आफ़ताब से पूछा –
रोज़ डूबते हो ,
फिर अगले रोज़
क्यों निकल आते हो?
कहा आफ़ताब ने –
इस इंतज़ार में,
कभी तो कोई डूबने से
बचाने आएगा।