हम सब न जाने कब से धरा, प्रकृति और उसकी व्यवस्था को अस्वीकार कर रहें हैं. उससे खिलवाड़ कर रहें हैं. हम कायनात या इस दुनिया के नियम व तालमेल को रोज़ तोड़ते और भंग करते हैं। धरा, जल, सागर, आकाश, अंतरिक्ष को कचरा से भरते जा रहें हैं.
कभी हम सब ने सोंच नहीं कि प्रकृती हमें रिजेक्ट या अस्वीकार कर दें. तब क्या होगा? आज वही हो रहा है. शायद इस धरा को मानव के अति ने बाध्य कर दिया है. वह अपना राग, नाराज़गी दिखा रही है. कहीं मानव भी विलुप्त ना हो जाए मैमथ, डोडो, डायनासोर की तरह या विलुप्त निएंडरथल – विलुप्त मानव प्रजातियों की तरह. प्रकृति के इस इशारे को संकेत या चेतावनी मान लेने का समय आ गया है. प्रकृति और मानव का सही सामंजस्य अनमोल है. यह समझना ज़रूरी है.
Most inspirational.you are right,dear!
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Thank you Aruna. 😊
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Most welcome,dear🌷
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shi kaha apne… Maine bhi apne vichar likhe hai ispe, Jaroor padhe
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Aabhaar Rishabh. Maine padha aapke posts. Bahut acche hai.
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https://myjoopress.wordpress.com/2020/03/20/corona-act-of-god/
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Thanks for the invitation.
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my pleasure mam ,happy that you liked it
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Always welcome.
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बिल्कुल सही कहा आपने रेखा । कार्य कोई भी हो हर क्रिया की प्रतिक्रिया कभी ना कभी सामने जरूर आती है। और हम चाहकर भी अपनी जिममेदारियों से ना ही भाग सकते है और ना ही मुंह फेर सकते है।
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बहुत आभार पोस्ट पसंद करने और अपने विचार बताने के लिए.
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हाँ! हमें प्रकृति के साथ तालमेल रखना चाहिए!
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बिलकुल. धन्यवाद.
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सहमत !
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धन्यवाद !
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बिल्कुल सही कहा।
जो बोयेगा वही काटना होगा,
कब तक भागोगे,
सम्मुख एकदिन आना होगा।
आप अपनी जिम्मेवारियों से मुंह नही फेर सकते और ना ही अपनी गलतियों को छुपा सकते हो।
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आपका धन्यवाद .हमें पृथ्वी की व्यवस्था का सम्मान करना हीं होगा.
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