धुँधली यादें

यादों पर धूलों की चादरें बिछने दीं.

समय के साथ तह दर तह जमने दिया .

हवा के झोंके से जब थोड़ी भी धूल उड़ी या

हथेलियों से धूल की परतों को जब भी हटाया.

देखा आज भी वे यादें उतनी हीं ताज़ी हैं.

ना समय , ना धूल के कण उन्हे धुँधला कर सकें हैं.

12 thoughts on “धुँधली यादें

    1. यादें हीं तो रह जातीं हैं और कुछ यादें बिलकुल धुँधली नहीं होतीं. समय कितनी भी कोशिश कर ले . Some may be fad.

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  1. बिल्कुल सही कहा। हम बहुत दूसरे को बताते हैं भूल गए मगर खुद को समझाना आसान नहीं।👌👌

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  2. ज़िन्दगी से यादों को निकाल दिया जाए तो फिर उसमें बचेगा ही क्या रेखा जी ? आपकी ये पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगीं । सचमुच कुछ यादें ऐसी होती हैं जिन्हें समय की धूल भी धुंधला नहीं कर सकती । बरसोंबरस गुज़र जाने के बाद भी वे वैसी ही ताज़ा बनी रहती हैं मानो कोई कल-की-सी बात हो । और अच्छा यही है कि ऐसी सुहानी यादों को सहेजकर रखा जाए क्योंकि जब मन के भीतर और बाहर अंधेरा छा जाता है तो वे जुगनुओं सी जगमगाती हैं ।

    आपने ‘फिर तेरी कहानी याद आई’ फ़िल्म का यह गीत तो ख़ूब सुना होगा –
    आने वाला कल इक सपना है
    गुज़रा हुआ कल बस अपना है
    हम गुज़रे कल में रहते हैं
    यादों के सब जुगनू जंगल में रहते हैं

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    1. यादें कुछ अजीब सी होती है।
      कुछ समझ ही नहीं आता है। इनको क्या कहूं अच्छा… बुरा..
      कुछ नहीं समझ आता. कभी-कभी यह हिम्मत देती है.
      कभी कभी हिम्मत ले लेती है.
      कभी-कभी तो कुछ लिखने का भी मन नहीं करता है.
      कल का दिन कुछ ऐसा हीं था।

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