यादों पर धूलों की चादरें बिछने दीं.
समय के साथ तह दर तह जमने दिया .
हवा के झोंके से जब थोड़ी भी धूल उड़ी या
हथेलियों से धूल की परतों को जब भी हटाया.
देखा आज भी वे यादें उतनी हीं ताज़ी हैं.
ना समय , ना धूल के कण उन्हे धुँधला कर सकें हैं.

यादों पर धूलों की चादरें बिछने दीं.
समय के साथ तह दर तह जमने दिया .
हवा के झोंके से जब थोड़ी भी धूल उड़ी या
हथेलियों से धूल की परतों को जब भी हटाया.
देखा आज भी वे यादें उतनी हीं ताज़ी हैं.
ना समय , ना धूल के कण उन्हे धुँधला कर सकें हैं.

yadein hi rah jati hai…and you say in the last line – it can be faded!
Nice!
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यादें हीं तो रह जातीं हैं और कुछ यादें बिलकुल धुँधली नहीं होतीं. समय कितनी भी कोशिश कर ले . Some may be fad.
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Reblogged this on The Shubham Stories.
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Thank you 🙏
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Memories never die… Bahut hi sundar… 🙏🤗
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thank you Ashish.
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बिल्कुल सही कहा। हम बहुत दूसरे को बताते हैं भूल गए मगर खुद को समझाना आसान नहीं।👌👌
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जी मधुसूदन, शुक्रिया.
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ज़िन्दगी से यादों को निकाल दिया जाए तो फिर उसमें बचेगा ही क्या रेखा जी ? आपकी ये पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगीं । सचमुच कुछ यादें ऐसी होती हैं जिन्हें समय की धूल भी धुंधला नहीं कर सकती । बरसोंबरस गुज़र जाने के बाद भी वे वैसी ही ताज़ा बनी रहती हैं मानो कोई कल-की-सी बात हो । और अच्छा यही है कि ऐसी सुहानी यादों को सहेजकर रखा जाए क्योंकि जब मन के भीतर और बाहर अंधेरा छा जाता है तो वे जुगनुओं सी जगमगाती हैं ।
आपने ‘फिर तेरी कहानी याद आई’ फ़िल्म का यह गीत तो ख़ूब सुना होगा –
आने वाला कल इक सपना है
गुज़रा हुआ कल बस अपना है
हम गुज़रे कल में रहते हैं
यादों के सब जुगनू जंगल में रहते हैं
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यादें कुछ अजीब सी होती है।
कुछ समझ ही नहीं आता है। इनको क्या कहूं अच्छा… बुरा..
कुछ नहीं समझ आता. कभी-कभी यह हिम्मत देती है.
कभी कभी हिम्मत ले लेती है.
कभी-कभी तो कुछ लिखने का भी मन नहीं करता है.
कल का दिन कुछ ऐसा हीं था।
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मैं समझ सकता हूँ रेखा जी ।
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जी.
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