कर्णप्रिय

कान सिर्फ़ सुनने और किसी को

बातें सुनाने के लिये नहीं होते।

ये दिल अौर मन को शांति दे

या शांति हर भी सकते हैं।

मंत्र योगा, गीत, भजन,

मन को शीतल-शांत,

तृप्त करते है।

गानों की आवाज कानों से सुन

पैर थिरकने लगते हैं .

हमें दूसरों के लिए

कर्णप्रिय या कर्ण कटु

क्या बनना हैं , यह हमारी पसंद हैं.

4 thoughts on “कर्णप्रिय

  1. बिल्कुल सही कहा रेखा जी आपने । सचमुच यह चुनाव हमारा ही होता है कि हमें क्या बनना है : कर्णप्रिय या कर्णकटु । हमारे शास्त्रों में भी तो कहा गया है : सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियं ।

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    1. आपकी बात सही है। परंतु समझता कौन है? न जाने कितनी बार कितने लोगों ने, कितने विद्वान में लिख दिया है। फिर भी कड़वा बोलने वाले बोलते हीं हैं। चाहे इससे सामने वाले को कितनी भी तकलीफ ना क्यों ना पहुंचे।
      आपने तो सही श्लोक ने लिखा है। आभार ।

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