ज़िंदगी के रंग -143

जिनकी पुकार ,

मदद की गुहार

अनसुनी की जाती है .

उसे अपनी बातें दोहराने

की आदत पड़ जाती हैं.

फिर कहने वाले बड़े मज़े से कह देते हैं –

इन्हें तो पुरानी बातें दोहरने की आदत हैं.

16 thoughts on “ज़िंदगी के रंग -143

  1. अत्यंत क्रूर सत्य है यह व्यावहारिक जीवन तथा इस संसार एवम् समाज का । इसे रेखांकित करने के लिए आभार रेखा जी । ऐसी बेबाक बात मैंने पहली बार पढ़ी है ।

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    1. ये क्रूर बातें हमारे आसपास अक्सर होती हैं. जिन्हें अनदेखा – अनसुना कर दिया जाता हैं. आपको पसंद आई जान कर ख़ुशी हुई वरना मेरी लेखनी से नाराज़ होने वाले भी अनेको हैं.
      ऐसी बातों को मनोविज्ञान की भाषा में emotional abuse कहते हैं जो सामान्य abuse से कहीं घातक होते हैं.

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      1. बिल्कुल ठीक है रेखा जी । इमोशनल अब्यूज़ यकीनन ज़्यादा ख़तरनाक होता है क्योंकि यह पहले से ही ग़मज़दा इंसान को और ज़्यादा तोड़ देता है । लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि आजकल लोग सैडिस्ट होते जा रहे हैं और दूसरों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़ककर ख़ुशी हासिल करते हैं ।

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      2. जी. मैंने भी यही पाया हैं.
        इमोशनल या मनोवैज्ञानिक abuse पर एक पोस्ट लिखा हैं. उसे पोस्ट करने से पहले ये हलके- फुलजे write ups/ कवितायें डाल रहीं हूँ . तब शायद लोग इसे पढ़ेगे और समझेंगे.
        आप जैसे सुधी पाठकों से सुझाव की अपेक्षा रहेगी.

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