रौशनी की चाह में

रौशनी की चाह में ……

वक़्त को रोकने की कोशिश में ……

सूरज की सुनहरी बिखरी रोशनी को

दुपट्टा की गाँठ में बाँधा.

दिन ढले गाँठें खोली ,

पर सुनहरी नहीं ,

चाँद की रूपहली रौशनी ……

चाँदनी बिखर गई हर ओर

ज़िंदगी शायद इसी का नाम है .

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