कभी कभी अपने साथ अकेले छुट्टियाँ बिताना , समय गुज़ारना, अपने आप से बातें करना अच्छा लगता है.
पर एक प्रश्न सभी की ज़बान पर होती है -आप अकेली आईं हैं? बिलकुल अकेली ? अच्छा ! मन कैसे
लगता हैं आपका ?
वामा .., नारी क्या अकेले नहीं होनी चाहिए ?हमने भी पूछ लिया – आपके साथ कौन है?
अकेले ? बिना पत्नी …. बिना बच्चों के ?पर किसी को इसकी चिंता नहीं . यह प्रश्नक्यों सभी की नज़रों में
होता हैं अकेली नारी के लिए ? पर क्यों पुरुषों के लिए नहीं ? शायद असुरक्षित समाज की दुहाई देंगे लोग .
पर असुरक्षा भी तो वही देते हैं. 
A sad reality of our society. Very touching post 🙂
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Yes! I always feel this.
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me too 😦
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लाज़वाब
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आभार .
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Saran I tried to reach your blog but couldn’t open the page.
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सच है
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तकलीफ़देह सच्चाई .
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सचमुच बहुत सुंदर लिखा है आपने एक दम सच !
अकेले?? ये पूछने वाले वो लोग हैं जिन्होंने कभी खुद से बात नहीं की व दूसरों की जिंदगी में झांकने में दिलचस्पी रखी ।
👌
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जी , बिलकुल सही ! पता नहीं कब लोग महिलाओं को भी बराबरी का दर्जा देंगे ? और दूसरों की ज़िंदगी में ताकझाँक करना छोड़ेंगे . शुक्रिया प्रशंसा के लिए .
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