बादलों से ऊपर

बादलों से ऊपर एक और जहाँ हैं

जहा ना जाने कौन बैठा

नचाता है सबको कठपुतलियों की तरह ……

5 thoughts on “बादलों से ऊपर

  1. बहुत ही खूबसूरत पंक्तिया । हम सभी उस ऊपरवाले से अनजान हैं।बिल्कुल सही कहा मगर आपकी पंक्तिया पढ़ मेरे मन मे कुछ अलग भाव आया जो आपको समर्पित है—–

    दुनियाँ रंगमंच और हम किरदार हैं,
    इशारे का निदेशक के करते इंतजार हैं,
    रंगमंच सज चुका था पर्दा खुला द्वार का,
    पाठ मिला था सभी को प्रेम और त्याग का,
    पटकथा उलट दिए,छल,कपट भर दिए,
    था भरोषा रब को हमने छल उसी से कर दिए,
    जंग हुआ मंच पर भागदौड़ मच गई,
    पटकथा थी प्रेम की वो नफरतों में ढल गई,
    देखता रहा निदेशक मौन हो उदंडता,
    लिखता रहा सभी का अब मिलेगा दंड क्या,
    हाँ नेपथ्य है जहाँ लौटकर के जाएँगे,
    जो किये हैं मंच पर उसकी मजा पाएंगे,
    सब पोशाक छीन लेगा पहन गए मंच पर,
    ना मिलेगा पाठ कभी जो किए हैं मंच पर,
    ना नचाता उंगलियों पर वो भी तो लाचार हैं,
    दुनियाँ रंगमंच और हम किरदार हैं।।

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