ज़िंदगी के रंग – 72

रोज़ हँसाती- रुलाती ,

भगाती – दौड़ती ,

परेशानियों में रूबरू कराती

ज़िंदगी से परेशान हो कर

आख़िरकार पूछ ही लिया –

छः माही , सालाना परीक्षाओं

की तो आदत सी है .

पर तुमने तो हद ही कर दिया .

जब देखो परखती जाँचती रहती हो…..

यह सिलसिला कब रोकोगी?

ज़िंदगी की खिलखिलाहट

झंकार सी खनक उठी बोली –

फिर ज़िन्दगी हीं क्या होगी ?

इन्हीं से तो बनी हो

तुम और तुम्हारी ज़िंदगी.