वक्त फिसलता है
रेत की तरह,
कितना भी पकङो
मुट्ठी मे या रेत घड़ी में।
नदी के जल में हो
या
रेगिस्तान के बालुका ढेर में हो।
सरक हीं जाता है जकङ से।
रेत हो या वक्त
बस रह जाती हैं यादें !!!!!!
वक्त फिसलता है
रेत की तरह,
कितना भी पकङो
मुट्ठी मे या रेत घड़ी में।
नदी के जल में हो
या
रेगिस्तान के बालुका ढेर में हो।
सरक हीं जाता है जकङ से।
रेत हो या वक्त
बस रह जाती हैं यादें !!!!!!
Posted by Ranjeeta2018 — March 22, 2018 in
नदी के दो किनारे की तरह होते हैं कुछ रिश्ते
नदी के दो किनारे की तरह
होते हैं कुछ रिश्ते
थोड़े बेबुन्यादी, तो कुछ कच्चे-पक्के
से होते हैं ये रिश्ते
कुछ तूफानी, कुछ सरल
थोड़े बेगानी, थोड़े मतलबी
तो कुछ वक्त के साथ बदलते
हैं ये रिश्ते
नदी के दो किनारे की तरह
होते हैं कुछ रिश्ते…
कहीं गहरे, कहीं उथले
कहीं ज़िन्दगी का मुख मोड़ते
नगर, गाँव, दिल को जोड़ते
चपल, चंचल, तीव्र, या फिर
बरसाती झरने से होते हैं रिश्ते
कभी चट्टान से अचल
तो कभी कच्चे धागे से कमज़ोर होते हैं रिश्ते
नदी के दो किनारे की तरह
होते हैं कुछ रिश्ते…
निरंतर प्रवाह से कुछ लम्बे
समय तक चलते हैं
तो कुछ बीच में ही दम तोड़ देते हैं
कुछ तट की सीमा पार कर
सैलाब ले आते हैं
तो कुछ विश्वास के आभाव में
सिकुड़ कर मर जाते हैं ये रिश्ते
नदी के दो किनारे की तरह
होते हैं कुछ रिश्ते…
जीवन चलता है मात्र रिश्तों पर
और जीव जीता है मात्र जल पर
जैसे-जैसे जीवन से लोग जुड़ जाते हैं
कुछ निर्जीव तो कुछ सजीव
बेनाम रिश्ते पनप जाते हैं
कुछ यादों के तानो बानो में उलझे होते हैं
कोई कठोर, कोई नरम, कोई कडवे, कोइ मधुर
तो कोई नदी के दो किनारे की तरह
होते हैं कुछ रिश्ते
नदी के दो किनारे की तरह
होते हैं कुछ रिश्ते…
कुछ कांच से टूट कर बिखर जाते हैं
कुछ चुटकी भर सिन्दूर से जुड़ जाते हैं
अपनापन का मुखोटा पहने
भावनाओं के चक्रव्यूह में फस जाते हैं ये रिश्ते
मानो या न मानो पर अपनी अलग पहचान,
अलग परिभाषा बनाते हैं ये रिश्ते
कभी एकतरफा तो कभी दो तरफ़ा होते हैं ये रिश्ते
कभी खूबसूरत, कभ निशब्द तो कभी बनावटी होते हैं ये रिश्ते
नदी के दो किनारे की तरह
होते हैं कुछ रिश्ते…
Don’t sit and wait.
Get out there,
feel life.
Touch the sun,
and immerse in the sea.
❤ ❤ Rumi