कुछ लिखने की कोशिश में

कुछ लिखने की कोशिश में
कभी-कभी महसूस होता है,
ऐसा कुछ तो पढ़ा है……….
शायद पहले किसी ने लिखा है……
पर सच तो यह है कि
कविताएं खुद को दोहराती रहती हैं,
अलग-अलग शब्दों ….. भावों…. में।
वैसे हीं जैसे मौसम बदलते हैं,
बार-बार वही गर्मी-सर्दी-बरसात या
मधुमास दोहरा कर आता हैं।

18 thoughts on “कुछ लिखने की कोशिश में

  1. क्या खूब 👌 👌
    आपकी बात सही भी है..

    दरअसल हर कोई वही लफ़्ज़ों को दोहराता है अपने अंदाज में…

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  2. varshon se dil ki jajbaat kagaj par simatate rahe hain…..magar ……..dhun roj naye bante rahe hain……ham kuchh naya nahi likhte ….phir bhi naya hota hai.

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