​जला हुआ जंगल छुप कर रोता रहा…..

जला हुआ जंगल छुप कर रोता रहा तन्हाई में,

लकड़ी उसी की थी उस दियासलाई में।

 

 

Source: ​जला हुआ जंगल छुप कर रोता रहा…..

38 thoughts on “​जला हुआ जंगल छुप कर रोता रहा…..

  1. लोग कहते हैं कि आदमी को अमीर होना चाहिए,
    और हम कहते कि आदमी का जमीर होना चाहिए…

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      1. लोग रह गए इतराते अपनी चालाकियों पर,
        वो समझ ही न पाये कि वो क्या गँवा बैठे हैं ।

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  2. अपनों को हैं अपने ही मिटाते,
    टांगी में इतनी दम कहा,
    जो पेड़ को काट पाते
    अगर पेड़ की टहनी उसके
    साथ ना निभाते——बहुत खूब

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  3. यह बिल्कुल वैसा है,,,

    पेड़ों के कटने का कोई किस्सा न होता,
    गर कुल्हाड़ी में लकड़ी का हिस्सा न होता.

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    1. बिलकुल! बहुत खुबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं आपने। आपका आभार!!

      पर इंसान तो विज्ञान की नई खोजों से इतना निष्ठुर हो गया है कि बिन कुल्हाङी ही मशीनों की मदद से पेङों को काट गिराता है।

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