मेरा शहर-कविता

 आज तक ना जाने

कितने शहरों में रहीं  हूँ,

आज भी बनजारों सा ,

 आजाद परिंदे  जैसा,

भटकना और घूमना पसंद है।

किसी ने पूछा आप का  शहर कौन सा है?

क्या जवाब दूँ, मुझे तो

सारे शहर अपने से लगते हैं ।

51 thoughts on “मेरा शहर-कविता

    1. जब भी किसी एक शहर के बारे में कुछ कहना -लिखना चाहती हूँ , दुविधा में पड़ जाती हूँ 😊😊कविता पसंद करने के लिये धन्यवाद.

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      1. जी, वैसे शहरों की खासियतें अब ख़ास नहीं रही, नए नए शौक अपना दायरा बड़ा रहे हैं और नुक्कड़ वाली दुकान को मुँह चिड़ा रहे हैं।

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      2. आपकी बात सही है. नुक्कड़ की चाय का मजा तो हमने University तक उठाया है.
        अब लोग बदल गये है. कुछ व्यस्तता, कुछ अपनी समस्याएँ.

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