नचिकेत और यम का संवाद
Kathy Upanishad was written by achary Kath. It is legendary story of a little boy, Nachiketa who meets Yama (the Indian deity of death). Their conversation evolves to a discussion of the nature of mankind, knowledge, Soul, Self and liberation.
आचार्य कठ ने उपनिषद रचना की। जो कठोपनिषद कहलाया। इस में नचिकेत और यम के बीच संवाद का वर्णन है । यह मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान की चर्चा है।
विश्वजीत यज्ञ किया वाजश्रवा ने ,
सर्वस्व दान के संकल्प के साथ।
पर कृप्णता से दान देने लगे वृद्ध गौ।
पुत्र नचिकेत ने पिता को स्मरण कराया,
प्रिय वस्तु दान का नियम।
क्रोधित पिता ने पुत्र नचिकेत से कहा-
“जा, तुझे करता हूँ, यम को दान।”
नचिकेत स्वंय गया यम के द्वार ।
तीन दिवस भूखे-प्यासे नचिकेत के
प्रतिबद्धता से प्रसन्न यम ने दिया उसे तीन वर ।
पहला वर मांगा -पिता स्नेह, दूसरा -अग्नि विद्या,
तीसरा – मृत्यु रहस्य और आत्मा का महाज्ञान।
और जाना आत्मा -परमात्मा , मोक्ष का गुढ़ रहस्य.
यज्ञ किया पिता ने अौर महाज्ञानी बन गया पुत्र ।

Interesting. 🙂 Pita ne toh daan de diya putra ko krodh se, mujhe lagta h nachiketa ki buddhimata se usne gyan prapt kiya !
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हाँ, नचिकेत ने पिता के क्रोध को भी आशिर्वाद में बदल लिया। यम से जीवन- मृत्यु -मोक्ष जैसी बातें जान लीं।
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very nicely written, i have read it in Upnishad.
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Thanks a lot. Yes this story is written in upnishad and its reference is also given in mahabharat. 😊
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behtareen! Shaandar!!
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बहुत- बहुत धन्यवाद…..
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नचिकेता की कथा निस्संदेह प्रेरणास्पद है । पुनः स्मरण कराने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया रेखा जी ।
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आपका स्वागत हैं जितेन्द्र जी. आपकी प्रशंसा मेरे लिये प्रेरणा का काम करती हैं. धन्यवाद. 😊
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That is a nice story from our upanishads
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Yes , you are right. It is a story of moral values and spiritual thoughts.
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very beautifully written
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Thanks a lot 😊😊
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Enlightening !
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Thank you 😊
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😊
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Thank you.
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😊
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कठोपनिषद् को विस्तार से पठन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । हालांकि तृतीय वरदान के संदर्भ में नचिकेता का दृढसंकल्प सर्वजनविदित है, किंतु शुरू से ही नचिकेता ने दृढ-चरित्र, संयम और कुशाग्र बुद्धि का प्रदर्शन किया था । यम के न होने पर भी वह लौटे नहीं, प्रतीक्षा करते रहे । आत्मतत्व के ज्ञान के बदले यम के सभी प्रलोभन और प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिए । इसके अतिरिक्त द्वितीय वरदान के रूप में यम ने जो अग्निविद्या सिखाई थी, वह वहीं दुहरा कर अपनी बुद्धिमत्ता का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया था । यम ने यहाँ तक कहा था — “हमें तुम्हारे जैसे ही पूछने वाले मिला करें” । तथा प्रसन्न होकर मणियों की माला प्रदान की थी, साथ ही नचिकेता के नाम पर उस अग्निविद्या का नामकरण “नचिकेत अग्नि” किया था ।
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कठोपनिषद् पठन के लिये साधुवाद।
आपने कठोपनिषद् का सार बङे सुंदर
तरिके से लिखा है। मेरी कविता पढ़ने
अौर उसके बारे में इतनी खुबसूरती से
लिखने के लिये, मैं आपकी आभारी हूँ।
धन्यवाद।
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