चिड़ियों की चहक सहर…सवेरा… ले कर आती है.
नीड़ को लौटते परिंदे शाम को ख़ुशनुमा बनाते हैं.
ढलते सूरज से रंग उधार लिए सिंदूरी शाम चुपके से ढल जाती.
फिर निकल आता है शाम का सितारा.
पर यादों की वह भीगी शाम उधार हीं रह जाती है,
भीगीं आँखों के साथ.
चिड़ियों की चहक सहर…सवेरा… ले कर आती है.
नीड़ को लौटते परिंदे शाम को ख़ुशनुमा बनाते हैं.
ढलते सूरज से रंग उधार लिए सिंदूरी शाम चुपके से ढल जाती.
फिर निकल आता है शाम का सितारा.
पर यादों की वह भीगी शाम उधार हीं रह जाती है,
भीगीं आँखों के साथ.
तारीख़ों में छुपी हैं कितनी कहानियाँ.
किसी तारीख़ से जुड़ी होतीं हैं यादें,
किसी से दर्द, किसी से ख़ुशियाँ.
किसी से उम्मीद, आशाएँ और अरमान.
और कुछ तारीख़ें कब आ कर चली जातीं हैं,
पता हीं नहीं चलता.