शिवलिंग और नर्मदा ( कविता )

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एक पत्थर ने पूछा शिवलिंग से।

                    तुम चिकने हो, सलोने हो इसलिए

                                  पूजे जाते हो?

                हमें तो ना कोई पूछता है। ना ही पूजता है।

                शिवलिंग ने कहा- मैं भी तुम जैसा ही था।

                     नोकदार रुखड़ा, पत्थर का टुकड़ा।

                        पर मैंने अपने को छोड़ दिया

                      नदी के प्रवाह में, नियंता के सहारे।

                   दूसरों को चोट देने के बदले चोटें खाईं।

                नर्मदा ने मुझे घिस – माँज कर ऐसा बनाया।

                  क्या तुम अपने को ऐसे को छोड़ सकोगे?

           तब तुम भी शिव बन जाओगे, शिवलिंग कहलाओगे।

(ऐसी मान्यता है कि नर्मदा नदी का हर पाषाण शिवलिंग होता है या उनसे स्वाभाविक और उत्तम शिवलिंग बनते हैं। नर्मदा या रेवा नदी हमारे देश की 7 पवित्र नदियों में से एक है। नर्मदा नदी छत्तीसगढ़ में अमरकंटक मैं विंध्याचल गाड़ी श्रृंखला से निकलती है और आगे जाकर अरब सागर में विलीन हो जाती है। अमरकंटक में माता नर्मदा का मंदिर है । यह ऐसी एकमात्र नदी है जिस की परिक्रमा की जाती है यह उलटी दिशा में यानी पूरब से पश्चिम की ओर बहती है । इसे गंगा नदी से भी ज्यादा पवित्र माना जाता है । मान्यता है कि गंगा हर साल स्वयं गंगा दशहरा के दिन नर्मदा नदी के पास प्ले के लिए पहुंचती है ।यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस प्राचीन नदी की चर्चा रामायण, महाभारत , पुराणों और कालिदास के साहित्य में भी मिलता है।

हमारा जीवन भी ऐसा हीं है। जीवन के आघात, परेशनियाँ, दुःख-सुख हमें तराशतें हैं, हमें चमक  प्रदान करते हैं ।

Life is a journey of self discovery. Describe your journey till now or a part of your journey which brought to closer to a truth about life or closer to your soul and self-discovery. #SelfDiscovery

 

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पेड़ और पर्वत के अस्तित्व की कहानी ( पर्यावरण धारित प्ररेरक कविता )

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पहाड़ पर विशाल बरगद का पेड़ हवा में झूम रहा था। वृक्ष लाल पके फलों से लदा था। तभी एक पका फल घबरा कर पेड़ को पुकार उठा। जरा धीरे हिलो। वरना मैं गिर पड़ूँगा। वृक्ष मुस्कुरा कर रह गया।
तभी झुंड के झुंड, हरे पंखों वाले तोते उसी डाल पर आ कर बैठ गए। डाली बड़ी ज़ोरों से लचक गई। फल फिर घबरा कर चिल्ला उठा ‘मुझे बचाओ, मैं नीचे गिर पड़ूँगा’। तभी एक तोते ने डरे-सहमे फल पर चोंच मारा। जिस बात का ड़र था, वही हुआ। बेचारा फल डाल से टूट कर नीचे गिरने लगा। पेड़ को उसने फिर आवाज़ दिया –“ मुझे बचाओ”। पेड़ ने स्वभाविकता से जवाब दिया। “यही जिंदगी है, अब अपने बल पर जीना सीखो”।
फल एक धूप से तपते चट्टान पर गिर कर बोला- “मैं अभी बहुत छोटा हूँ और यह चट्टान बहुत गरम है यहाँ तो मैं सुख कर खत्म हो जाऊंगा। ”। पेड़ ने जवाब दिया- “दरार के बीच की चुटकी भर मिट्टी से दोस्ती करके तो देखो”। वह लुढ़क कर वृहत चट्टान के बीच के दरार में जा छुपा
मौसम बीता, समय बीता। फल के अंदर के बीज़ धीरे-धीरे अंकुरा गए। एक नन्हा पौधा चट्टान पर जड़े पसारते बड़ा हो गया। उसकी लंबी जड़ें चट्ट्नो से लटक गई। जड़ें आगे बढ़ कर मजबूती से मिट्टी में समा गई। अब नन्हा पौधा पूरे शान से वृक्ष बन कर खड़ा था।
एक दिन पुराने बरगद ने आवाज़ दिया- “याद है वह दिन। जब तुम कदम-कदम पर मदद के लिए मुझे आवाज़ देते थे? देखो आज तुम अपने बल पर कितने बड़े और शक्तिशाली हो गए हो। इसलिए डरने के बदले अपने-आप पर विश्वास करना जरूरी है।
नए पेड़ ने हामी भरी और कहा- “हाँ तुम्हारी बात तो सही है। पर क्या तुमने कभी यह सोंचा की मेरे यहाँ उगने से बेचारे चट्टान को इतने बड़े दरार का सामना करना पड़ा”। तभी नीचे से चट्टान की आवाज़ आई – “ नहीं दोस्त, हम सभी का अस्तित्व तो एक दूसरे के बंधा है। हमारे बीच का यह दरार तो पुराना है। तुमने और तुम्हारी जड़ों ने तो हमें बांध कर रखा है। तुमने हमें तपती धूप और बरसते बौछारों से बचाया है। यह पूरा पर्वत ही तुम वृक्षो की वजह से कायम है।
नए पेड़ को पुराने पेड़ की बातों महत्व अब समझ आया। हम भी छोटी-छोटी बातों से घबरा कर औरों से मदद की उम्मीद लगाने लगते हैं। हमें अपने पर विश्वाश करने की आदत बनानी चाहिए।