ना समझो इसे मौन,
खोज़ रहें है, हम हैं कौन?
कर रहे हैं अपने आप से गुफ़्तगू।
हमें है खोज़ अपनी, अपनी है जुस्तजू ।
इश्क़ अपने आप से, अपने हैं हमसफ़र।
छोटी सी ज़िंदगी, छोटी सी रहगुज़र।
रेत हो या वक्त ,
फिसल जाएगा मुट्ठी से कब।
लगेगा नहीं कुछ खबर। 
ना समझो इसे मौन,
खोज़ रहें है, हम हैं कौन?
कर रहे हैं अपने आप से गुफ़्तगू।
हमें है खोज़ अपनी, अपनी है जुस्तजू ।
इश्क़ अपने आप से, अपने हैं हमसफ़र।
छोटी सी ज़िंदगी, छोटी सी रहगुज़र।
रेत हो या वक्त ,
फिसल जाएगा मुट्ठी से कब।
लगेगा नहीं कुछ खबर। 
चाहत मेरी या चाहत तेरी,
है क्या रूबरू हक़ीक़त से?
कहते हैं मिल जाती है कायनात,
चाहो ग़र शिद्दत से।
पर कुछ हसरतें, रह जातीं हैं हसरतें।
ग़र तुम चाहते हो किसी को रूह से
तब बनी रहेगी यह
मद्धम सी लौ-ए-चाहत अनंत तक।
आसमाँ और ज़मीं, सूरज और चाँद की उल्फ़त सी।
कुछ चाहतों में मिलन नहीं,
होती हैं ये चाहतें, चाहते रहने के लिये।

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