टूट कर मुहब्बत करो
या मुहब्बत करके टूटो.
यादों और ख़्वाबों के बीच तकरार चलता रहेगा.
रात और दिन का क़रार बिखरता रहेगा.
कभी आँसू कभी मुस्कुराहट का बाज़ार सजता रहेगा.
यह शीशे… काँच की नगरी है.
टूटना – बिखरना, चुभना तो लगा हीं रहेगा.
टूट कर मुहब्बत करो
या मुहब्बत करके टूटो.
यादों और ख़्वाबों के बीच तकरार चलता रहेगा.
रात और दिन का क़रार बिखरता रहेगा.
कभी आँसू कभी मुस्कुराहट का बाज़ार सजता रहेगा.
यह शीशे… काँच की नगरी है.
टूटना – बिखरना, चुभना तो लगा हीं रहेगा.
आसमान छूने की चाहत छोड़,
कैद कर लिया है अपने को,
अपनी जिंदगी को,
खुले दरवाजे और शीशे की कुछ अजनबी दीवारों, खिड़कियों में।
जैसे बंद पड़ी किताबें,
कांच की अलमारी से झांकती हैं अपने को महफ़ुज मान,
पन्नों में अपनी दास्तानों को कैद कर।
अब खाली पन्नों पर,
अपने लफ्ज़ों को उतार
रश्म-ए-रिहाई की नाकाम कोशिश कर रहें हैं।
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