कहते हैं विध्वंस के बाद दुनिया रचने
के लिए शिव ने बजाया डमरू।
जिसका नाद या स्वर, सृजन का आधार बना।
यह स्वर आज भी फ़िज़ा में गूँज रहा है।
स्वर नाद बन कर।
स्वर साधना या नाद साधना मार्ग है,
ग़र पाना है नीलकंठ, शिव को।
पाना है सत्य को, वास्तविक सौंदर्य को।
पाना हो सत्यं शिवं सुन्दरम् को।

Happy Shivratri !




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