शुभ शरद पूर्णिमा! 06.10. 20 25

सूर्य की रोशनी से चंद्रमा दमकता है।

कहते हैं – सूर्य हर दिन अपनी

सुषुम्ना किरणों का थोड़ा-थोड़ा अंश

चंद्रमा को दे उसे कलाओं से सजाता है।

हर पूर्णिमा, पूर्णचंद्र पंद्रह कलायुक्त हो जाता है।

पर शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि चंद्रमा

सोलह कलायुक्त हो, अमृतमय हो जाता है,

और चरम ब्रह्मांडिय ऊर्जा से भर जाता है।

ऐसी रातें राज, रहस्य, वैभव से

भर रौशन चाँद अमृत बरसाता है ।

आकाश-चेतना व चंद्र-ऊर्जा मानव

के तन-मन-रूह को सिक्त कर जाती है।

समुद्र मंथन में शरद पूर्णिमा को अवतरित हुई

सोलह कलायुक्त महालक्ष्मी, राधारानी

संग चंद्रवंशी कृष्ण ने इस कौमुदी पूर्णिमा को

चंद्रमा के अमृतमय रौशनी में महारास रचाया।

यमुना-निकुँज में बंसी धुन गूंजी उठी –

आश्विन महापुर्णिमा, व्रज-वीथकाओं में व्रजभाषा में गूंज उठी …..

कोजागरी? – कौन जाग रहा ? पुकार सुन गोपियों ने

कोजागरी पूर्णिमा की आध्यात्मिक चाँदनी में रास रचाया।

On Request English Translation (with the help of AI)

Sharad Purnima

The moon glows with the light of the sun.

It is said that every day, the sun gives a small part of its Sushumna rays to the moon,

adorning it with its divine phases/qualities.

On every full moon night, the moon becomes complete — filled with fifteen phases/qualities.

But on the sacred night of Sharad Purnima,

the moon attains its sixteenth and final phase/qualities.

becoming nectar-filled, radiant with the supreme cosmic energy.

On such a — mysterious and divine night —

the resplendent moon showers elixir-like light upon the earth.

The sky’s consciousness / cosmic energy and moon’s lunar energy

soak and awaken the human body, mind, and soul.

From the great Samudraa Manthan (churning of the ocean),

on Sharad Purnima emerged Mahalakshmi, full with sixteen divine qualities.

With Mahalakshmi – Radha Rani and the lunar Krishna celebrated

this Kaumudi Purnima — the radiant festival of moonlight —

in the blissful Maahaaraas beneath the nectar-drenched sky.

By the banks of Yamuna, the flute of Krishna echoed —

on the grand full moon night of Ashwin month.

The call of “Kojagari?” — “Who is awake?” resounded,

and the Gopis, hearing it, awakened in love and devotion,

dancing the divine Raas in the moonlit grace of Kojagari Purnima.

रथ-यात्रा 23.6.2020

उड़ीसा  के पुरी,  पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र या श्रीक्षेत्र में होनेवाले रथ-यात्रा की महत्ता  शास्त्रों और पुराणों में भी माना गया है। स्कन्द पुराण में कहा गया है कि रथ-यात्रा कीर्तन करने वाले पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है।  श्री जगन्नाथ के दर्शन, नमन करनेवाले  भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं।

रथयात्रा में विष्णु, कृष्ण,  वामन और बुद्ध आदि दशावतारों पूजे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ  जनता के बीच आते हैं –  सब मनिसा मोर परजा ….सब मनुष्य मेरी प्रजा है. आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अन्त में गरुण ध्वज पर या नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं।

किवदंती अनुसार रथयात्रा के तीसरे दिन लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ को ढूँढ़ते आती हैं। पर द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं।  लक्ष्मी जी नाराज़ होकर  लौट जाती हैं। बाद में भगवान जगन्नाथ लक्ष्मी जी को मनाने जाते हैं। उनसे क्षमा माँगकर और अनेक प्रकार के उपहार देकर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।

इस मान-मनौव्वल को  आयोजन के रुप में मनाया जाता है। इस आयोजन में एक ओर द्वैताधिपति भगवान जगन्नाथ की भूमिका में संवाद बोलते हैं तो दूसरी ओर देवदासी लक्ष्मी जी की भूमिका में संवाद करती है।  लक्ष्मी जी को भगवान जगन्नाथ के द्वारा मना लिए जाने को विजय का प्रतीक मानकर इस दिन को उत्सव रुप में मनाया जाता है।

 एक अन्य किवदंती  कहती है, राजा इन्द्रद्युम्न, को समुद्र में एक विशालकाय काष्ठ दिखा। राजा के उससे विष्णु मूर्ति का निर्माण कराने का निश्चय किया।  वृद्ध बढ़ई के रूप में विश्वकर्मा जी स्वयं आ गये। पर  मूर्ति बनाने के लिए उन्हों ने एक शर्त रखी। मूर्ति के पूर्णरूपेण बनने तक कोई उनके कक्ष में ना आये। राजा ने इसे मान लिया।  वृद्ध बढ़ई कई दिन से बिन खाए पिये  काम कर रहा था। अतः चिंतित राजा के द्वार खुलवा दिया।   वह वृद्ध बढ़ई तो  नहीं मिला पर  उसके द्वारा अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियाँ वहाँ पर मिली। आकाशवाणी सुन, उन मूर्तियों को  स्थापित करवा दिया।

रथयात्रा शरीर और आत्मा के मेल का संकेत – सांख्य दर्शन के अनुसार शरीर के 24 तत्वों के ऊपर आत्मा है। ये तत्व – पंच महातत्व, पाँच तंत्र माताएँ, दस इन्द्रियां और मन के प्रतीक हैं। शरीर रथ का निर्माण बुद्धि, चित्त और अहंकार से होती है। ऐसे रथ रूपी शरीर में आत्मा रूपी भगवान विराजमान होते हैं। इस प्रकार रथयात्रा शरीर और आत्मा के मेल की ओर संकेत करता है और आत्मदृष्टि बनाए रखने की प्रेरणा देता है। शरीर के रथयात्रा के समय रथ का संचालन आत्मा युक्त शरीर करती है जो जीवन यात्रा का प्रतीक है।  शरीर में आत्मा होती है। जिस माया संचालित करती है। इसी प्रकार भगवान जगन्नाथ के विराजमान होने पर उसे खींचने के लिए लोक-शक्ति संचालित करती है।Mahaprabhu sri jagannaths world famous Rath Yatra will be without ...

 

ख्याल अपना-अपना

 

एक हीं सागर को देख,
कितने अलग-अलग ख्याल आते हैं।
जब सागर के अथाह जल राशि
में झाँका ……….
उसमें किसी को  बस अपनी परछांई दिखी।
किसी  को लगा – बङा खारा यह समुंदर है।
तभी पास खङे परिचित वृद्ध सज्जन नें ,
समुद्र को नमन किया
अौर कहा –
ये तो लक्ष्मी के उत्पति दाता हैं।

 

 

किवदंति ( Mythology )

दैत्य, असुर तथा दानव अति प्रबल हो उठे। तब उन पर विजय पाने के लिये विष्णु जी के सुझाव पर क्षीर सागर मथंन कर उससे अमृत निकाला गया।

मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया। स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बने। समुद्र मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला।महादेव जी उस विष को पी लिया किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस कालकूट विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव जी को नीलकण्ठ कहते हैं। उनकी हथेली से थोड़ा सा विष पृथ्वी पर टपक गया था जिसे साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया।
इसके पश्चात् फिर से समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी निकलीं। साथ हीं कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा , ऐरावत हाथी, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष , रम्भा नामक अप्सरा , वारुणी , चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष, शंख निकले और अन्त में धन्वन्तरि वैद्य,  अमृत का घट लेकर प्रकट हुये।

रक्षाबंधन की कहानी   (Rakhi -celebration of brother and sister love)

 

 

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राखी का त्योहार लक्ष्मी  जी ने  दानव राज  बाली को राखी बाँध कर   शुरू किया था.  दानव राज  राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे. नारायण ने राजा बालि की बढ़ती शक्ति को नियंत्रित करने के लिये  वामन/ बौना  अवतार लिया. बाली दानी राजा था. नारायण ने वामन बन बाली  से दान में तीन पग या तीन क़दम  धरती माँगी. बाली ने वामन का  छोटा आकार देख हामी भर दी. तब नारायण ने विराट रुप ले कर  तीन पग में उसकी सारी धरती नाप ली और  बाली को पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया l

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चतुर बाली ने नारायण की बात मानते हुए अपनी एक  कामना पूरी  करने का वचन तीन बार – त्रिवाचा लिया. नारायण अपनी सफलता से प्रसन्न हो तीन बार बाली से कह बैठे – “दूँगा दूँगा दूँगा”.  तब  बलि  ने नारायण से कहा – ” मेरे सोने  और जागने पर  जिधर भी मेरी दृष्टी  जाये उधर आप ही नजर आयें. वचनबद्ध नारायण बाली के जाल में फँस चुके थे. वे वहीँ वास करने लगे.

काफी समय तक नारायण के  ना लौटने पर लक्ष्मी जी को चिंता हुई. उन्हों ने घुम्मकड  नारद जी पूछा -“आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कहीँ देखा हैं ?”नारद जी बताया , नारायण तो  पाताल लोक में हैं राजा बलि के  पहरेदार बन गये हैं.  चिंतित और व्यथित  लक्ष्मी जी के पूछने पर नारद  ने उन्हें राजा बलि को अपना  भाई बना रक्षा बंधन बाँध, रक्षा  का वचन लेने की सलाह दी.  उससे त्रिवचन  लेने कहा और रक्षा बंधन के उपहार स्वरूप नारायण को माँगने का सुझाव दिया.

    लक्ष्मी   सुन्दर नारी बन   रोते हुये  बलि  के पास गई. बाली के पूछने पर उन्हों ने  उत्तर दिया -” मेरा कोई भाई नहीँ हैं, जो मेरी रक्षा करे. इसलिए मैं दुखी हूँ .द्रवित हो  बलि उन्हें  अपनी धर्म बहन बना लिया. उपहार में लक्ष्मी ने जब उसके  पहरेदार को माँगा,  तब बाली को सारी बातें समझ आई. पर बाली ने वचन का मान रख लक्ष्मी को बहन बनाया और उपहार में नारायण को लौटाया. तब से रक्षाबन्धन का त्योहार  शुरू हुआ. आज़ भी जानकार  कलावा बाँधते समय यह  मंत्र बोलते हैं –

“येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:” 

जैसे  महाबली दांनवेंद्र  बाली ने  वचन का सम्मान  कर  रक्षा  किया, वैसे तुम मेरी  रक्षा करो, रक्षा  करो. बाली ने दानव होते हुए रिश्ते का मान रखा.

 

 

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छाया  चित्र  इन्टरनेट  से.