झुक कर रिश्ते निभाते-निभाते एक बात समझ आई,
कभी रुक कर सामनेवाले की नज़रें में देखना चाहिये।
उसकी सच्चाई भी परखनी चाहिये।
वरना दिल कभी माफ नहीं करेगा
आँखें बंद कर झुकने अौर भरोसा करने के लिये।
झुक कर रिश्ते निभाते-निभाते एक बात समझ आई,
कभी रुक कर सामनेवाले की नज़रें में देखना चाहिये।
उसकी सच्चाई भी परखनी चाहिये।
वरना दिल कभी माफ नहीं करेगा
आँखें बंद कर झुकने अौर भरोसा करने के लिये।