काँच की नगरी

टूट कर मुहब्बत करो

या मुहब्बत करके टूटो.

यादों और ख़्वाबों के बीच तकरार चलता रहेगा.

रात और दिन का क़रार बिखरता रहेगा.

कभी आँसू कभी मुस्कुराहट का बाज़ार सजता रहेगा.

यह शीशे… काँच की नगरी है.

टूटना – बिखरना, चुभना तो लगा हीं रहेगा.

बिखरती खुशबू

बिखरती खुशबू को समेटने

की चाहत देख सुगंध ने कहा –

हमारी तो फितरत हीं है बिखरना

हवा के झोंकों के साथ।

तुमने बिखर कर देखा है कभी क्या ?

इस दर्द में  भी आनंद है।