किसका दर्द बड़ा ?

हवा में लहराती,

दुनिया रौशन करने की ख़ुशी से नाचती सुनहरी,

लाल नारंगी लौ क्या जाने,

बाती के जलने का दर्द।

जलती बाती क्या जाने गर्म-तपते तेल की जलन?

ना लौ, ना बाती, ना तेल जाने

दीये के एक रात की कहानी।

जल-तप दूसरों को रौशन करती,

अपने तले हीं अंधकार में डूबा छोड़।

पता नहीं किसका दर्द बड़ा ?

पर सब जल-तप करते रहते हैं रौशन राहें।

बाती और चराग

बाती की लौ भभक

कर लहराई।

बेचैन चराग ने पूछा –

क्या फिर हवायें सता रहीं हैं?

लौ बोली जलते चराग से –

हर बार हवाओं

पर ना शक करो।

मैं तप कर रौशनी

बाँटते-बाँटते ख़ाक

हो गईं हूँ।

अब तो सो जाने दे मुझे।