डर

सब खो दिया।

अब क्यों डरें?

कुछ और अब

ना चाहिए।

वरना फिर डरना

सीख जाएँगें।

खोने का डर

इस दुनिया के मेले में,

लोगों को खोने से

परेशान न हो।

सब को खुश करने की

कोशिश में ,

रोज़ एक मौत ना मरो।

एक बात सीख लो!

खुद को खो कर खोजने और

संभलने में परेशानी बहुत है।

चाँद मिला राहों में….

एक दिन, चाँद मिला राहों में.

पूछा उसने – इतनी रात में अकेले ?

तुम्हें अँधेरे से डर नहीं लगता क्या ?

जवाब दिया हमनें – तुम भी तो अकेले हो,

स्याह रातों में…..

तुमसे हीं तो सीखा है,

अँधेरे में भी हौसले से अकेले रहना.

अंश

कई बार मर- मर कर जीते जीते,
मौत का डर नहीं रहता.
पर किसी के जाने के बाद
अपने अंदर कुछ मर जाता है.
….शायद एक अंश अपना.
वह ज़िंदगी का ना भरने वाला
सबसे बड़ा ज़ख़्म, नासूर  बन जाता है.